तस्वीर बदलते भारत की! बंगाल के इस गांव में ग्रामीणों की सहमति से हुई दो युवतियों की शादी, बनाया यादगार जश्न

10:49 AM Nov 09, 2025 | Geetha Sunil Pillai

सुंदरबन (पश्चिम बंगाल)- एक तरफ जहाँ पूरा देश समलैंगिक रिश्तों को लेकर कानूनी और सामाजिक बहस में उलझा है, वहीं पश्चिम बंगाल के सुंदरबन के एक दूरदराज के गाँव ने प्यार और स्वतंत्रता की मिसाल कायम की है। यहाँ के रहने वालों ने न सिर्फ दो लड़कियों के बीच हुई शादी को स्वीकार किया, बल्कि उसे पूरे उत्साह और रीति-रिवाजों से भी मनाया।

जलबेरिया गाँव (कुलतली ब्लॉक) के पालर चक मंदिर में 4 नवंबर को 20 वर्षीय दो पेशेवर नृत्यांगनाओं, रिया सरदार और राखी नास्कर ने एक-दूसरे को जीवनसाथी चुना। रिया और राखी की मुलाकात लगभग दो साल पहले हुई थी। दोनों ही डांस की दुनिया से जुड़ी थीं, और धीरे-धीरे उनकी दोस्ती फोन कॉल्स के ज़रिए गहरी होती गई। दोस्ती प्यार में बदली और दोनों ने समाज की बंदिशों को तोड़कर अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीने का फैसला किया। एक सुखद आश्चर्य यह रहा कि ग्रामीणों ने उनके विवाह को सहर्ष स्वीकार किया, विवाह में सैकड़ों ग्रामीणों ने उल्लास के साथ शंख बजाए, उन्हें आशीर्वाद दिया और शादी के जश्न में शामिल हुए।

मीडिया से बात करते हुए रिया ने कहा , "हमने एक-दूसरे के साथ जीवनसाथी बनने की प्रतिज्ञा ली है।" रिया ने बताया कि उसने कम उम्र में ही अपने माता-पिता को खो दिया था और उसकी मौसी कविता कोयल ने उसका पालन-पोषण किया, जो पहले तो हैरान रह गईं, लेकिन उसके फ़ैसले का विरोध नहीं किया। उसने हाई स्कूल तक पढ़ाई की है और अब एक नर्तकी के रूप में काम करती है।

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दूसरी ओर नौवीं कक्षा तक पढ़ी और एक स्थानीय नृत्य मंडली में प्रस्तुति देने वाली राखी ने कहा, "अपने किसान परिवार के दबाव के बावजूद, मैंने उसी व्यक्ति से शादी करने का फैसला किया जिससे मैं सच्चा प्यार करती हूँ।" दोनों की मुलाक़ात सोशल मीडिया पर हुई, उन्होंने एक-दूसरे के नंबर शेयर किए और पड़ोसियों की उत्सुक निगाहों के बावजूद घंटों बातें कीं। बाद में, वे एक ही नृत्य मंडली में शामिल हो गईं, जहाँ "हमारी दोस्ती कुछ और हो गई, प्यार में बदल गई," उन्होंने समारोह के बाद साथ-साथ बैठकर कहा। बकुलतला थाना क्षेत्र की रहने वाली राखी ने पूछा, "हम वयस्क हैं। हम अपने जीवन के फैसले खुद ले सकते हैं। जीवनसाथी चुनते वक्त लिंग मायने क्यों रखता है?"

यह शादी किसी आंदोलन का हिस्सा नहीं, बल्कि सच्चे स्नेह और साहस से भरी एक 'शांत क्रांति' थी। गाँव के लोगों ने इस नए रिश्ते को पूरा सपोर्ट किया। एक स्थानीय व्यक्ति मिलन सरदार ने कहा, "हम सबने मिलकर अपनी दो बेटियों के नए जीवन की शुरुआत में उनकी मदद करने का फैसला किया। सभी ने अपना-अपना योगदान दिया।"

शादी के सभी रीति-रिवाज एक पुजारी द्वारा संपन्न कराए गए, जहाँ रिया ने दुल्हन और राखी ने दूल्हे का वस्त्र धारण किया। गाँव की प्रथा के अनुसार ही रस्मों के बाद मुर्गी-भात के भोज का आयोजन भी किया गया जिसमे सभी ख़ुशी ख़ुशी शामिल हुए।

कुछ लोगों के लिए, एक हिंदू मंदिर के अंदर समलैंगिक विवाह का दृश्य अप्रत्याशित था। दूसरों के लिए, यह बस साहस और भाईचारे का उत्सव था। सफाई और स्वास्थ्य सेवा के लिए इलाके का दौरा करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता अंकुर बसु ने कहा, "यह बहुत खूबसूरत था।"

उन्होंने आगे कहा, "यह कोई विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ। यह दो लोगों ने एक-दूसरे को चुना था।" पुलिस ने कहा कि उनके पास इस घटना की कोई आधिकारिक रिपोर्ट नहीं है। एक अधिकारी ने कहा, "किसी ने हमसे संपर्क नहीं किया। अगर ग्रामीण शांतिपूर्वक मंदिर के किसी समारोह में शामिल होते हैं, तो हमें इससे कोई लेना-देना नहीं है।"

पश्चिम बंगाल में यह पहली घटना नहीं है। पिछले साल दुबराजपुर में भी दो महिलाओं-नमिता दास और सुष्मिता चटर्जी ने मंदिर में शादी करके ऐसी ही मिसाल पेश की थी।