चित्तौड़गढ़- बीते तीन महीनों से राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के गंगरार क्षेत्र के गुर्जर बाहुल्य गाँव दोला जी का खेड़ा में एक परिवार को खाप पंचायत के फरमान के चलते सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि परिवार की आजीविका का साधन किराने की दुकान बंद करनी पड़ी, गाँव के किसी व्यक्ति ने उनसे बातचीत बंद कर दी, यहाँ तक कि घर के एक कार्यक्रम के लिए ढोल वाले को भी बुलाने से रोक दिया गया। यह मामला एक बार फिर उजागर करता है कि राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में खाप पंचायतें किस तरह नियम-कानून को धता बताकर अपना रौब जमाए हुए हैं।
मामला सत्यनारायण सुवालका परिवार का है, जिसने भीलवाड़ा निवासी एक व्यक्ति से जमीन खरीदी थी। भूमि खरीदने के बाद जब परिवार द्वारा इस पर तारबंदी की जाने लगी तो भूमि के प्रथम स्वामी गुर्जर परिवार के सदस्य सोहन पुत्र मांगीलाल गुर्जर द्वारा इस भूमि में चारागाह भूमि की होने की बात कहते हुए उस भूमि पर उसका कब्जा होने की बात कही गई और निर्माण कार्य रोकने का दबाव बनाया गया।
लेकिन जब बात नहीं बनी तो चारागाह भूमि पर अतिक्रमण होने की शिकायत दर्ज करवाई गई। इसके बाद नायब तहसीलदार कार्यालय से नोटिस जारी किया गया। और प्रशस्ति अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर बात की तो परिवार ने एक जनप्रतिनिधि और अन्य व्यक्तियों द्वारा चारागाह भूमि पर किए गए अतिक्रमण को एक साथ हटाने की बात कही इस पर प्रशासनिक अधिकारी लौट गए।
बाद में प्रशासन ने केवल सुवालका परिवार के "अतिक्रमण" को हटाया, जबकि आसपास अन्य प्रभावशाली लोगों द्वारा कब्जा की गई सरकारी जमीन को नजरअंदाज किया गया। परिवार ने जब इस भेदभाव का विरोध किया, लेकिन उनपर दबाव बनाने के लिए परिवार का सामाजिक बहिष्कार करने का फरमान खांप पंचायत ने जारी कर दिया।
द मूकनायक से बातचीत में सत्यनारायण ने बताया कि 29 मार्च को गाँव वालों ने उसके परिवार बहिष्कार कर दिया, तब से कोई भी उससे या परिवार के अन्य सदस्यों से बातचीत व्यवहार नहीं कर रहा है। हाल ही उनके ही परिवार के एक विवाह समारोह में शामिल हुए तो रिश्तेदार को भी धमकाया गया।सत्यनारायण का कहना है कि ये विवाद एक जमीन को लेकर हुआ है जिसके पूर्व मालिक सोहन गुर्जर ने कब्जा कर रखा था और उसी जमीन पर अपना कब्जा छोड़ना नहीं चाहता जिसके कारण उसने अपने समाज के बाहुल्य वाले गाँव में पंचायत बिठाकर बहिष्कार का फरमान जारी करवा दिया।
सुहालका के परिवार में उनकी बीवी ,दो बच्चे और 90 वर्षीया दादी हैं जो बीमार हैं। परिजनों को भय है अगर किसी मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति हो गई तो उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए भी कोई मदद नहीं मिलेगी। सुहालका बताते हैं कि 80 परिवारों के इस गांव में अधिकांश गुर्जर परिवार ही हैं जिसके कारण दूसरे समुदाय के लोग कुछ कह नहीं पाते हैं। पूर्व में भी एक 'गर्ग' परिवार को इसी तरह किसी बात को लेकर खाप पंचायत ने बहिष्कृत कर दिया था और वे लोग 2-3 साल एकांकी जीवन बिताने को मजबूर हुए, हाल ही उन्हें वापस समाज में स्वीकार किया गया।
सत्यनारायण ने बताया कि बहिष्कार की शिकायत तहसीलदार को दी थी तो उन्होंने उनके क्षेत्राधिकार के बाहर का मामला बताते हुए नायब तहसीलदार को सूचना देने को बोला। नायब तहसीलदार रामपाल खटीक ने कहा, " हमने अतिक्रमण की कार्रवाई की थी। सामाजिक बहिष्कार की जानकारी नहीं है, यदि परिवार के साथ ऐसा हुआ है तो जिला कलेक्टर को शिकायत करें निर्देश मिलने पर कार्रवाई करेंगे।"
गाँव की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता तारा बाहेती ने बताया कि गांव के स्तर पर सुवालका परिवार का बहिष्कार किया गया है, इसकी जानकारी है। पूर्व में भी एक अन्य परिवार का बहिष्कार किया गया था। उच्च अधिकारियों को इस बारे में सूचना नहीं दी है।
इस पूरे प्रकरण को लेकर जब सत्यनारायण ने पुलिस थाने में शिकायत दी तो दो-तीन दिन तक रिपोर्ट दर्ज करने में टालमटोली चलती रही और आखिर 16 जून को परिवाद दर्ज किया गया उसकी एफ़आईआर नहीं लिखी गई। थाना अधिकारी गंगरार डीपी दाधीच ने बताया कि थाने में रिपोर्ट प्राप्त हुई है, दोनों पक्षों को बुलाया है वास्तविकता की जांच कर रहे हैं। जमीन पर अतिक्रमण का मामला है। इधर पीड़ित का कहना है कि कोई भी पंचायत किसी परिवार को सामाजिक रूप से बहिष्कृत नहीं कर सकती है, ऐसा होने पर पंचायत सदस्यों पर मुकदमा दर्ज कर सजा दिलानी चाहिए लेकिन इस मामले में प्रशासन और पुलिस दोनों ही चुप है।