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मध्य प्रदेश के शासकीय अस्पताल निजी हाथों में सौंपने की तैयारी!

भोपाल। मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य के सभी सिविल अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) को आउटसोर्स करने की योजना बनाई है। इस प्रस्ताव के तहत डॉक्टर और कर्मचारियों की नियुक्ति से लेकर अन्य प्रबंधन की जिम्मेदारी आउटसोर्स कंपनियों को दी जाएगी। अस्पताल के संचालन और सेवा प्रदायगी की ज़िम्मेदारी इन कंपनियों पर होगी, जबकि सरकारी नियंत्रण और सुविधाओं का प्रबंधन प्रशासन खंड चिकित्सा अधिकारी (बीएमओ) के हाथों में रहेगा। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि शुल्क और सेवाओं का निर्धारण सरकार के दिशा-निर्देशों के तहत ही हो।

प्रदेश में कुल 161 सिविल अस्पताल और 348 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) हैं, जिनमें से अधिकांश ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में स्थित हैं। इन अस्पतालों और सीएचसी में स्टाफ की कमी और अन्य समस्याओं के कारण सरकार ने इन स्वास्थ्य संस्थानों को आउटसोर्स करने का निर्णय लिया है। इससे प्रशासनिक और चिकित्सकीय सेवाओं में सुधार की उम्मीद है, क्योंकि आउटसोर्स कंपनियां बेहतर प्रबंधन और आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकेंगी।

पदों पर भर्ती प्रक्रिया

उपमुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने सोमवार को मुख्य सचिव अनुराग जैन के साथ अन्य प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की, जिसमें स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की योजनाओं पर जोर दिया गया। शुक्ल ने 454 चिकित्सकीय संस्थानों में पदों की स्वीकृति के साथ ही मेडिकल कॉलेजों में वेतन संरक्षण (पे-प्रोटेक्शन) के प्रस्ताव को प्राथमिकता देने की बात कही है। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में रेडियोलॉजिस्ट की सेवाएं उपलब्ध कराने और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) को सुदृढ़ करने के लिए भी निर्देश दिए गए हैं।

सहायक प्राध्यापक पदों पर अधिकतम आयु सीमा में छूट

मेडिकल कॉलेजों में सहायक प्राध्यापक के पदों पर भर्ती की आयु सीमा को 40 वर्ष से बढ़ाकर 50 वर्ष करने के संबंध में भी चर्चा की गई है। इससे अधिक उम्र के चिकित्सकों को भी अवसर मिलेगा और शिक्षण क्षेत्र में विशेषज्ञों की कमी को पूरा करने में मदद मिलेगी। इसके अतिरिक्त, उन्होंने अस्पतालों और चिकित्सा सुविधाओं के उन्नयन के लिए बजट आवंटन और नए जिलों में जिला अस्पतालों के निर्माण के लिए पदों की स्वीकृति पर जोर दिया।

पैरामेडिकल काउंसिल का पुनर्गठन

उपमुख्यमंत्री ने पैरामेडिकल काउंसिल के पुराने अधिनियम को फिर से लागू करने के संबंध में चर्चा की। गौरतलब है कि इस वर्ष अप्रैल में राज्य सरकार ने अपनी काउंसिल भंग कर दी थी, क्योंकि केंद्र सरकार भी एक नई काउंसिल का गठन कर रही थी। लेकिन केंद्र की काउंसिल अभी तक नहीं बन पाई है, जिसके कारण न तो नए कॉलेज खुल पा रहे हैं और न ही पुराने कॉलेजों का पंजीकरण हो पा रहा है। यदि यह समस्या शीघ्र हल नहीं होती, तो सत्र 2024-25 की मान्यता पर भी संकट आ सकता है।

बैठक के दौरान, रीवा मेडिकल कॉलेज, सतना मेडिकल कॉलेज अस्पताल और इंदौर के एमवाय अस्पताल के उन्नयन और निर्माण के प्रस्तावों पर भी चर्चा हुई। इन परियोजनाओं के अनुमोदन के लिए जल्द से जल्द परीक्षण समिति से स्वीकृति प्राप्त करने की योजना बनाई गई है। इसके साथ ही वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट प्रावधान में अस्पतालों के उन्नयन और स्वास्थ्य अधोसंरचनाओं के विकास के लिए बजट की स्वीकृति की बात भी प्रमुख रूप से उठाई गई।

स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करने के प्रयासों के तहत उपमुख्यमंत्री ने कई अन्य महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं। इसमें जबलपुर मेडिकल कॉलेज में नर्सिंग भर्ती में विशेष छूट देना और नए जिलों में जिला अस्पतालों के निर्माण के लिए पदों की स्वीकृति शामिल है। इसके अतिरिक्त, रीवा जिले के ग्राम हिनौती में गौ-अभ्यारण्य की स्वीकृति और सांदीपनि संस्कृत विश्वविद्यालय के रीवा परिसर में आधारभूत संरचना विकास के लिए उच्च शिक्षा विभाग से राशि प्राप्त करने के लिए भी बैठक में चर्चा की गई।

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