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MP में 26 मासूमों की मौत के बाद जागी सरकार! अब हर जिले में दवा जांच सिस्टम, केंद्र को भेजा प्रस्ताव

भोपाल। मध्यप्रदेश में जहरीले कफ सिरप से 26 बच्चों की मौत ने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया है। दर्दनाक हादसे के बाद सरकार ने दवाओं की जांच और निगरानी प्रणाली को पूरी तरह अपग्रेड करने का फैसला लिया है। राज्य ने 211 करोड़ रुपए का विस्तृत प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है, जिसके तहत दवा परीक्षण व्यवस्था को माइक्रो लेवल तक ले जाया जाएगा। अब जांच सिर्फ चार शहरों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि हर जिले में ड्रग इंस्पेक्टर का स्वतंत्र कार्यालय बनेगा और मोबाइल लैब के ज़रिए मौके पर ही दवाओं की टेस्टिंग संभव होगी।

अब तक दवाओं की गुणवत्ता जांच भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर की लैब पर निर्भर रही है, जिससे जिलों से आने वाले सैम्पलों की रिपोर्ट में देरी और मॉनिटरिंग की सीमाएँ सामने आती रही हैं। नई योजना राज्य औषधि सुरक्षा और नियामक सुदृढ़ीकरण योजना (SSDRS 2.0) के तहत तैयार की गई है। इसमें दवा निरीक्षण, सैम्पलिंग, लाइसेंसिंग और रिपोर्टिंग की पूरी प्रक्रिया को डिजिटल और तेज़ बनाया जाएगा, ताकि खराब या मिलावटी दवाओं पर जल्दी कार्रवाई हो सके और रिकॉल प्रक्रिया में देरी न हो।

हर जिले में होगा कार्यालय

सरकार ने प्रस्ताव में हर जिले में ड्रग इंस्पेक्टर के लिए आधुनिक कार्यालय की व्यवस्था का प्रावधान रखा है। इन दफ्तरों में सर्वर, आईटी सिस्टम, कंप्यूटर, दस्तावेज़-प्रबंधन प्रणाली और प्रशिक्षण सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएंगी। इसके साथ ही दवा निरीक्षकों, लैब कर्मियों और साइंटिफिक स्टाफ की नई भर्तियाँ की जाएंगी, ताकि निरीक्षण और जांच में किसी स्तर पर संसाधन या मानवबल की कमी न रहे।

प्रस्ताव के मुताबिक करीब 50 करोड़ रुपए चारों स्टेट ड्रग लैब्स के अपग्रेडेशन पर खर्च किए जाएंगे। इन लैब्स में माइक्रोबायोलॉजी और स्टेरिलिटी टेस्टिंग यूनिट स्थापित की जाएंगी, जिससे दवाओं में बैक्टीरिया, फंगस, मिलावट या रासायनिक बदलाव से जुड़ी जांचें उसी स्तर पर की जा सकेंगी, जैसी अंतरराष्ट्रीय मानकों वाली प्रयोगशालाओं में होती हैं। योजना का लक्ष्य इन लैब्स को NABL मान्यता दिलाना भी है, ताकि जांच रिपोर्ट राष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणिक और मजबूत मानी जा सके।

हैंडहेल्ड टेस्टिंग डिवाइस लगेगी

मौके पर त्वरित जांच और संदिग्ध दवा की तुरंत पहचान के लिए 4 करोड़ की लागत से हैंडहेल्ड टेस्टिंग डिवाइस खरीदे जाएंगे। इसके साथ मोबाइल लैब भी संचालित की जाएगी, जिससे दूरस्थ और ग्रामीण जिलों में भी सैंपल को तुरंत जांचा जा सके। अधिकारियों का कहना है कि इस व्यवस्था से फील्ड निरीक्षण में तेजी आएगी और सैंपलिंग से लेकर कार्रवाई तक का समय आधा हो जाएगा। योजना में 2 करोड़ रुपये प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने पर खर्च किए जाएंगे, जहां जांच तकनीकों, वैधानिक प्रक्रियाओं और डिजिटल मॉनिटरिंग की ट्रेनिंग दी जाएगी।

जहरीली सिरप कांड से 26 बच्चों की गई थी जान

गौरतलब है कि राज्य में जहरीले कफ सिरप के मामले ने बच्चों के जीवन पर भयावह असर डाला। डायएथिलीन ग्लाइकॉल नामक रसायन के मिलावटी उपयोग ने बच्चों के गुर्दों, फेफड़ों, लिवर और मस्तिष्क को तकरीबन नष्ट कर दिया। कई बच्चों की मौत किडनी फेल होने से हुई, जबकि रिपोर्ट्स में यह तथ्य सामने आया कि यह केमिकल शरीर के कई अंगों को धीरे-धीरे खत्म कर देता है। यह मामला प्रदेश के लिए एक कठोर चेतावनी बनकर सामने आया, जिसके बाद सरकार अब दवा सुरक्षा पर ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने की बात कह रही है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह अपग्रेड समयबद्ध तरीके से लागू हुआ तो दवा निगरानी व्यवस्था में बड़ा सुधार आएगा, लेकिन असली सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि जिला स्तर पर नियुक्त अधिकारी और प्रयोगशालाएँ कितनी ईमानदारी और निरंतरता के साथ काम करें।

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