नई दिल्ली: कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री जुएल ओराम को पत्र लिखकर ग्रेट निकोबार परियोजना को लेकर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस प्रोजेक्ट को मंजूरी देने की प्रक्रिया में वनाधिकार कानून (Forest Rights Act - FRA) का उल्लंघन किया गया है। राहुल गांधी ने सरकार से आग्रह किया है कि वह कानून में तय प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करे।
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपने पत्र में कहा कि ट्राइबल काउंसिल और स्थानीय समुदायों द्वारा उठाई गई आपत्तियों को गंभीरता से देखा जाना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि किसी भी विकास परियोजना को न्याय, समानता और मानवीय गरिमा जैसे संवैधानिक मूल्यों पर आधारित होना चाहिए।
राहुल गांधी के मुताबिक, लिटिल निकोबार और ग्रेट निकोबार के आदिवासी समुदायों—निकाबरीज़ और शॉम्पेंस—से विधिवत परामर्श नहीं किया गया। उनका कहना है कि "नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC)" दबाव में और अधूरी जानकारी के आधार पर लिया गया था, जिसे बाद में काउंसिल ने प्रोजेक्ट के असली स्वरूप को जानने के बाद वापस ले लिया।
उन्होंने याद दिलाया कि 2004 की सुनामी में ये आदिवासी समुदाय अपने पैतृक भूमि से विस्थापित हो गए थे और अब उन्हें डर है कि यह परियोजना उनकी जीवनशैली को और प्रभावित करेगी और उन्हें और ज्यादा हाशिये पर धकेल देगी।
जयराम रमेश और मणिकम टैगोर ने भी जताई आपत्ति
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश लंबे समय से इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने इसे "महाआर्थिकीय आपदा" बताते हुए कहा कि सरकार इसे जबरन आगे बढ़ा रही है। रमेश का कहना है कि उन्होंने इस मुद्दे पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से चर्चा भी की थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
पिछले सप्ताह कांग्रेस सांसद और लोकसभा में पार्टी के चीफ व्हिप मणिकम टैगोर ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा। उन्होंने इसे ₹72,000 करोड़ की परियोजना बताते हुए आग्रह किया कि सरकार तुरंत हस्तक्षेप करे और निकाबरीज़ जनजाति के संवैधानिक तथा कानूनी अधिकारों की रक्षा करे।
टैगोर ने आरोप लगाया कि अंडमान और निकोबार प्रशासन ने गलत तरीके से दावा किया कि FRA से जुड़े अधिकार "निपटा" दिए गए हैं और 13,075 हेक्टेयर वन भूमि को डायवर्ट करने के लिए मंजूरी दे दी गई। जबकि ट्राइबल काउंसिल ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया है।
उनके मुताबिक, यह सीधा-सीधा 2006 के वनाधिकार कानून का उल्लंघन है, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि जंगल की जमीन का डायवर्जन तभी हो सकता है जब—
FRA अधिकारों की मान्यता दी गई हो,
और प्रभावित ग्राम सभाओं की स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति प्राप्त की गई हो।
टैगोर ने प्रधानमंत्री से मांग की कि इस प्रक्रिया की स्वतंत्र समीक्षा कराई जाए, तब तक परियोजना को रोका जाए और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
परियोजना का दायरा और प्रभावित समुदाय
‘होलिस्टिक डेवलपमेंट ऑफ ग्रेट निकोबार’ नामक यह परियोजना लगभग 160 वर्ग किलोमीटर में फैली है। इसमें एक ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक टाउनशिप और बिजली संयंत्र का निर्माण शामिल है।
परियोजना के लिए लगभग 130 वर्ग किलोमीटर घने और संरक्षित जंगलों को काटे जाने की योजना है। यहीं पर निकाबरीज़ (अनुसूचित जनजाति) और शॉम्पेंस (विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह – PVTG) रहते हैं। शॉम्पेंस की आबादी अनुमानित रूप से सिर्फ 200 से 300 के बीच है।
संवैधानिक मूल्यों की अपील
राहुल गांधी ने अपने पत्र में कहा है कि विकास कार्यों को संविधान की आत्मा और आदिवासियों के अधिकारों का सम्मान करते हुए आगे बढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने आशा जताई कि सरकार कानून में निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करेगी और वनाधिकार कानून को उसकी सही भावना में लागू करेगी।