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MP: भोपाल यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे का निष्पादन शुरू, क्या गैस त्रासदी पीड़ितों की चिंता होगी खत्म?

भोपाल। लगभग 40 वर्षों के लंबे इंतजार और विभिन्न प्रयासों के बाद, यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में मौजूद 337 टन जहरीले कचरे के निष्पादन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। रविवार को फैक्ट्री परिसर में जिला प्रशासन, नगर निगम, स्वास्थ्य विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने निगरानी शुरू कर दी। कचरे को मध्य प्रदेश के पीथमपुर स्थित रामकी एनवायरोटेक्नोलॉजी कंपनी में सुरक्षित तरीके से नष्ट किया जाएगा।

कचरे को ले जाने के लिए 250 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर तैयार किया जाएगा। कंटेनरों में कचरा पैक करने की प्रक्रिया रविवार देर रात तक जारी रही। कंटेनरों को यूनिक नंबर दिए गए हैं, जिससे उनकी पहचान सुनिश्चित की जा सकेगी। जिला प्रशासन और पुलिस को अलर्ट पर रखा गया है ताकि कचरे को सुरक्षित तरीके से पीथमपुर पहुंचाया जा सके। कंटेनर करोंद मंडी और करोंद चौराहा होते हुए गांधीनगर, फंदा टोल नाका और इंदौर बायपास के रास्ते पीथमपुर पहुंचेंगे।

कर्मचारियों के लिए सुरक्षा इंतजाम

फैक्ट्री में मौजूद कर्मचारियों और मजदूरों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है। सभी को सुरक्षा किट, मास्क और अन्य उपकरण दिए गए हैं। स्वास्थ्य सुविधा के लिए एंबुलेंस और डॉक्टरों की टीम भी तैनात की गई है। किसी भी अप्रिय स्थिति में मौके पर ही चिकित्सा उपलब्ध कराई जाएगी।

कचरे की सफाई की खबर मिलते ही गैस त्रासदी पीड़ित संगठनों के प्रतिनिधि भी मौके पर पहुंचे। उनका कहना है कि यह प्रक्रिया नाकाफी है।

भोपाल ग्रुप फॉर इनफॉर्मेशन एंड एक्शन की सदस्य रचना ढींगरा ने कहा, “यहां मौजूद 337 टन कचरा कुल जहरीले कचरे का एक प्रतिशत भी नहीं है। फैक्ट्री परिसर के 36 एकड़ में जहरीला कचरा दबा हुआ है और एक तालाब भी इससे प्रभावित है। केवल कचरे को हटाने से समस्या खत्म नहीं होगी, ज़मीन और पानी की गहरी सफाई की जरूरत है।”

त्रासदी के बाद भूजल हुआ प्रदूषित

1984 की गैस त्रासदी में यूनियन कार्बाइड की लापरवाही के कारण हजारों लोगों की जान गई थी। इसके बाद से जहरीले कचरे का मुद्दा भी एक बड़ा पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संकट बना हुआ है। पीथमपुर में कचरे के निष्पादन की प्रक्रिया शुरू होने से उम्मीदें बढ़ी हैं, लेकिन गैस पीड़ित संगठनों की चिंताओं ने प्रशासन के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।

इतने वर्ष बाद भी जहरीला कचरा यूनियन कार्बाइड परिसर में दफन है। इस कारण भूजल प्रदूषित होने की बात सत्यापित हो चुकी है। वर्ष 2018 में इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टाक्सिकोलाजी रिसर्च लखनऊ की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आ चुका है। रिपोर्ट के अनुसार यूनियन कार्बाइड परिसर के आसपास की 42 बस्तियों के भूजल में हेवी मेटल, आर्गनो क्लोरीन पाया गया था, जो कैंसर और किडनी की बीमारी के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। गैस पीड़ित संगठनो का दावा है कि यह प्रदूषण धीरे-धीरे फैल रहा है।

गैस कांड हजारों की गई थी जान

1984 में दो दिसंबर की रात को भोपाल में मौत ने ऐसा तांडव मचाया कि आज तक उसके जख्म नहीं भर सके हैं। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्‍ट्री से हुई जहरीली गैस के रिसाव से रात को सो रहे हजारों लोग हमेशा के लिए मौत की नींद सो गए। इससे पूरे शहर में मौत का तांडव मच गया। मरने वालों की संख्या 16,000 से भी अधिक थी। मौत के बाद भी हजारों की संख्या में जो लोग जहरीली गैस की चपेट में आए वह आज तक इसका दंश झेल रहे हैं।

उस रात गैस त्रासदी से करीब पांच लाख जीवित बचे लोगों को जहरीली गैस के संपर्क में आने के कारण सांस की समस्या, आंखों में जलन या अंधापन, और अन्य विकृतियों का सामना करना पड़ा। त्रासदी का असर लोगों की अगली पीढ़ियों तक ने भुगता। गैस त्रासदी के बाद भोपाल में जिन बच्चों ने जन्म लिया उनमें से कई विकलांग पैदा हुए तो कई किसी और बीमारी के साथ इस दुनिया में आए। ये भयावह सिलसिला अभी भी जारी है और प्रभावित इलाकों में कई बच्‍चे असामान्‍यताओं के साथ पैदा होते रहे हैं।

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