मध्य प्रदेश में कुपोषण की भयावह तस्वीर: हाईकोर्ट सख्त, सभी कलेक्टर्स से रिपोर्ट तलब

05:02 PM Jul 26, 2025 | Ankit Pachauri

भोपाल। मध्य प्रदेश में बच्चों और महिलाओं के बीच कुपोषण और कुपोषणजनित बीमारियों की गंभीर स्थिति को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें कैग (CAG) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया गया है कि प्रदेश में 10 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं। इनमें से 1.36 लाख बच्चे गंभीर रूप से अतिकुपोषित हैं। वहीं, प्रदेश की महिलाओं में 57 प्रतिशत एनीमिया (रक्त की कमी) से पीड़ित हैं। इस पर हाईकोर्ट ने गहरी चिंता जताते हुए सभी जिलों के कलेक्टर्स से कुपोषण की स्टेटस रिपोर्ट तलब की है।

चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने राज्य शासन, मुख्य सचिव सहित अन्य संबंधित विभागों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह याचिका जबलपुर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता दिपांकर सिंह की ओर से अधिवक्ता अमित सिंह सेंगर, अतुल जैन, अनूप सिंह सेंगर व कोविदा त्रिपाठी द्वारा दाखिल की गई।

एमपी में देश का दूसरा सबसे खराब पोषण स्तर

याचिका में पोषण ट्रेकर 2.0 और हालिया स्वास्थ्य सर्वेक्षणों का हवाला देते हुए बताया गया है कि कुपोषण के मामले में मध्य प्रदेश देश में दूसरे स्थान पर आ गया है। प्रोटीन और विटामिन की भारी कमी के कारण बच्चों की वृद्धि रुक रही है। वे औसत कद-काठी से छोटे (ठिगने) और बेहद दुर्बल हो रहे हैं। अंडरवेट यानी कम वजन वाले बच्चों के मामले में भी राज्य का स्थान दूसरे नंबर पर है।

858 करोड़ के पोषण घोटाले का आरोप

याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि गर्भवती महिलाओं, किशोरियों, स्तनपान कराने वाली माताओं और छोटे बच्चों के लिए वितरित किए जाने वाले पोषण आहार में भारी अनियमितताएं हैं। कैग रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि पोषण आहार की गुणवत्ता और परिवहन व्यवस्था में करीब ₹858 करोड़ का भ्रष्टाचार हुआ है।

विशेष रूप से आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों की उपस्थिति नगण्य होने के बावजूद मध्याह्न भोजन और पोषण आहार का नियमित वितरण दर्शाया जा रहा है। उदाहरण के लिए, जबलपुर जिले में ही आंगनबाड़ी केंद्रों के किराये के रूप में ₹1.80 करोड़ का भुगतान किया गया, जबकि हकीकत में इन केंद्रों में बच्चों की संख्या बहुत कम पाई गई। प्रदेश में प्रति केंद्र 40 से 50 बच्चों का पंजीकरण है, लेकिन वास्तविक उपस्थिति बेहद कम है।

स्थानीय समाचार पत्र की रिपोर्ट के मुताबिक़ कुपोषण की भयावहता का अंदाजा ग्वालियर जिले के आदिवासी बहुल हरसी गांव की प्रियंका आदिवासी से लगाया जा सकता है। दो साल दो महीने की इस बच्ची का वजन मात्र 4 किलो 300 ग्राम है, जबकि चिकित्सकीय मानकों के अनुसार उसका वजन लगभग 12 किलो होना चाहिए। प्रियंका एसडी-4 स्टेज यानी गंभीर तीव्र कुपोषण (Severe Acute Malnutrition) की श्रेणी में आ चुकी है।

हाल ही में उसे एनआरसी (Nutrition Rehabilitation Centre) भितरवार में भर्ती किया गया, लेकिन हालत चिंताजनक होने के कारण शुक्रवार को उसे ग्वालियर मेडिकल कॉलेज रेफर करना पड़ा।

इस मामले में परियोजना अधिकारी ओमप्रकाश सिंह ने मीडिया को बताया, "बच्ची के माता-पिता पिछले छह माह से बाहर थे, इसलिए यह बच्ची ट्रेस नहीं हो पाई। जैसे ही इसकी जानकारी मिली, तुरंत उसे भर्ती कराया गया है।"

संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन

संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार प्राप्त है, जिसमें पोषणयुक्त भोजन की उपलब्धता भी शामिल है। इसके अलावा बच्चों के अधिकार संरक्षण आयोग और सुप्रीम कोर्ट की विभिन्न गाइडलाइंस के तहत बच्चों को उचित पोषण देना सरकार की जिम्मेदारी है। ऐसे में यदि लाखों बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, तो यह सीधा संविधान के मूल अधिकारों का हनन है।

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वह इस मुद्दे को सिर्फ औपचारिकता नहीं बनने देगा। अदालत ने सभी जिलों के कलेक्टरों से एक निश्चित समयावधि में कुपोषण की स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। अगली सुनवाई में यह रिपोर्ट केंद्र बिंदु रहेगी।