MP में प्रमोशन में आरक्षण पर हाईकोर्ट की रोक, सरकार से मांगा जवाब, अब नए फार्मूले पर संकट! 15 जुलाई को अगली सुनवाई

01:47 PM Jul 08, 2025 | Ankit Pachauri

भोपाल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति में आरक्षण को लेकर लागू किए गए नए नियमों 2025 पर अस्थायी रोक लगा दी है। यह फैसला कोर्ट की डिवीजन बेंच ने उस समय लिया, जब राज्य सरकार पुराने 2002 और नए नियमों 2025 के बीच अंतर स्पष्ट करने में विफल रही। अब इस मामले की अगली सुनवाई 15 जुलाई मंगलवार को होगी। अब मध्यप्रदेश सरकार के पदोन्नति नियम 2025 पर सवाल खड़े हो गए हैं।

अंतर साफ नहीं तो, नियम लागू नहीं होंगे

सोमवार को सुनवाई के दौरान कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की बेंच ने राज्य सरकार से पूछा कि 2002 और 2025 के नियमों में क्या अंतर है? इस पर सरकार कोई ठोस जवाब नहीं दे पाई। अदालत ने टिप्पणी की कि ऐसे हालात में जब तक अदालत अंतिम निर्णय नहीं दे देती, तब तक नए नियमों के तहत कोई पदोन्नति या कार्रवाई नहीं होगी।

सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित, फिर नए नियम क्यों?

संघ की ओर से अधिवक्ता सुयश मोहन गुरु ने कोर्ट को बताया कि यह मामला पहले से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। ऐसे में सरकार को पहले वहां से निर्देश या अनुमति लेनी चाहिए थी। इस पर बेंच ने भी सरकार से सवाल किया कि जब पुराना मामला शीर्ष अदालत में लंबित है तो फिर सरकार ने नए नियम बनाने की जल्दबाजी क्यों की?

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एडवोकेट जनरल, जो सरकार की ओर से पेश हुए, वह भी यह स्पष्ट नहीं कर सके कि 2002 और 2025 के नियमों में क्या मूलभूत अंतर है। इस पर कोर्ट ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जब तक अंतर स्पष्ट नहीं होता, नए नियम लागू नहीं किए जा सकते।

9 साल बाद आई नई प्रमोशन नीति, हाईकोर्ट में फसी

राज्य सरकार ने जून 2025 में नई प्रमोशन नीति लागू की थी, जिसमें आरक्षण का प्रावधान जोड़ा गया। इस नीति को सपाक्स संघ ने चुनौती दी है और इसके खिलाफ तीन अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई हैं। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह नीति संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। उनका कहना है कि प्रमोशन में आरक्षण से एक वर्ग को बार-बार लाभ मिलता है, जबकि दूसरा वर्ग पिछड़ जाता है।

2016 से प्रमोशन पर लगी है रोक

मध्यप्रदेश में 2016 से प्रमोशन पर रोक लगी है। साल 2002 में बनी नीति के तहत आरक्षण के आधार पर प्रमोशन होते रहे, जिससे अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी पीछे रह गए। जब विवाद बढ़ा तो मामला कोर्ट पहुंचा।

30 अप्रैल 2016 को मप्र हाईकोर्ट ने मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 को निरस्त कर दिया था। इसके बाद सरकार ने यह मामला सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी के जरिए चुनौती दी, जहां से यथास्थिति बनाए रखने का आदेश आया।

सरकार ने कर्मचारियों की नाराजगी और एक लाख से अधिक रिटायरमेंट बगैर प्रमोशन के मामलों को देखते हुए नई नीति बनाई। हालांकि सरकार ने उन्हें क्रमोन्नति और समयमान वेतनमान देकर वेतन लाभ देने की कोशिश की, परंतु वास्तविक प्रमोशन न मिलने से कर्मचारी अपने पुराने पद पर ही काम कर रहे हैं।

गोरकेला ड्राफ्ट लागू करती सरकार, तो नहीं होता विवाद: कांग्रेस

राज्य अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व सदस्य और कांग्रेस नेता प्रदीप अहिरवार ने गोरकेला समिति द्वारा तैयार किए गए प्रमोशन नियमों के ड्राफ्ट को लेकर मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव अनुराग जैन पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। द मूकनायक से बातचीत में उन्होंने आरोप लगाया कि, “मैंने पहले ही कहा था, नए फॉर्मूले पर विवाद हो सकता है, लेकिन मुख्य सचिव गोरकेला जो विधि सम्मत ड्राफ्ट था उसे लागू नहीं होने देना चाहते थे।

अहिरवार ने मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों पर भी निशाना साधते हुए कहा कि मुख्यमंत्री तक सही जानकारी नहीं पहुंचाई जा रही है। उनके अनुसार, “मंत्रालय की चौथी और पांचवीं मंज़िल पर बैठे अधिकारी मुख्यमंत्री को वास्तविक स्थिति से अवगत नहीं करा रहे। अधिकारियों ने एक नया ड्राफ्ट बना कर लागू करा दिया, जो कानूनी पेचीदगियों में उलझ रहा है।"

उन्होंने यह भी याद दिलाया कि वर्ष 2017 में तैयार किया गया प्रमोशन से संबंधित ड्राफ्ट आज तक लागू नहीं हो सका है, जबकि उस पर किसी भी तरह की वैधता को लेकर आपत्ति नहीं थी। प्रदीप अहिरवार ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “प्रशासन के भीतर कुछ अधिकारी, जो मनुवादी सोच से प्रेरित हैं, वे हर उस योजना को रोकने में लगे हैं जो सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाती है।”