राजस्थान में SC/ST वर्ग की जमीनों से जुड़े संशोधन से बढ़ रही नाराजगी, जानिए क्या है मामला?

11:20 AM Dec 05, 2024 | Geetha Sunil Pillai

जयपुर- राजस्थान सरकार ने हाल ही में राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 42 में संशोधन का निर्णय लिया है। इस संशोधन के तहत एससी-एसटी वर्ग की कृषि भूमि को सोलर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए लीज पर देने की अनुमति दी गई है। यह धारा अब तक इन वर्गों की जमीनों को अन्य समुदायों को बेचने, गिरवी रखने या हस्तांतरित करने से रोकती थी, ताकि उनकी जमीन और आजीविका सुरक्षित रहे।

हालांकि, संशोधन के बाद सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों ने इसे इन वर्गों के संवैधानिक अधिकारों पर सीधा हमला बताया है। उनका कहना है कि यह कदम बड़े पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने और दलित-आदिवासी समुदाय की जमीनें हथियाने का रास्ता खोलता है। संशोधन से इन समुदायों की आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है।संशोधन को लेकर एससी-एसटी वर्ग के संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।

फुले अंबेडकर विचार मंच ने लिखा मुख्यमंत्री को पत्र

फुले अंबेडकर विचार मंच, आसावरा के संयोजक शंकरलाल मेघवाल बिलड़ी ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस संशोधन को वापस लेने की मांग की है। पत्र में बताया की हाल ही में सरकार की कैबिनेट बैठक में राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 42 में संशोधन के निर्णय से संबंधित वर्गों को आजीविका और सुरक्षा पर गंभीर संकट खड़ा होने की आशंका है। जो राजस्थान भू राजस्व अधिनियम की धारा 42 इन वर्गों की भूमि को अन्य समुदाय को बेचने गिरवी रखने व हस्तांतरित करने से रोकते हैं इसका उद्देश्य एससी और एसटी वर्ग की भूमि और उनके अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है लेकिन इस संशोधन के बाद भूमाफिया को इन वर्गों की जमीन हथियाने का एक नया रास्ता मिल जाएगा।

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शंकर लाल मेघवाल बिलड़ी ने आगे बताया की एससी एसटी वर्ग के लोगों के पास जो थोड़ी बहुत कृषि योग्य जमीन बची हुई है वह भी इस प्रावधान के चलते नहीं बचेगी , इस प्रावधान को वापस लेकर एससी एसटी वर्ग के हितों का संरक्षण प्रदान करे।

आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता और ट्राइबल आर्मी के फाउंडर हंसराज मीना ने इस निर्णय को दलितों और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों पर हमला बताया। उन्होंने कहा, यह कदम सामाजिक न्याय और समानता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। भजनलाल शर्मा का यह निर्णय यह दर्शाता है कि उनकी सरकार बड़े पूंजीपतियों और प्रभावशाली वर्गों के हितों को प्राथमिकता देती है, जबकि समाज के वंचित और हाशिए पर रहने वाले वर्गों को हानि पहुंचाने में कोई झिझक नहीं दिखाती। यह नीति न केवल अमानवीय है, बल्कि भविष्य में राज्य में सामाजिक असंतोष और अस्थिरता को भी बढ़ावा देगी। भजनलाल शर्मा को इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि दलित और आदिवासी समुदायों के अधिकार संरक्षित रहें।

एडवोकेट अखिल चौधरी ने इस संशोधन को भाजपा शासित राजस्थान सरकार का दलितों और आदिवासियों के खिलाफ षड्यंत्र बताया। उन्होंने कहा, "सरकार ने कैबिनेट बैठक में एससी/एसटी के भूमि अधिकारों की रक्षा करने वाली काश्तकारी अधिनियम की धारा 42(बी) को बदलने का फैसला लिया है। यह निर्णय दलितों और आदिवासियों की जमीनें छीनकर पूंजीपतियों को सौंपने का रास्ता साफ करता है। यह अन्याय किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।"

भारत आदिवासी पार्टी के प्रवक्ता डॉ. जितेंद्र मीना ने इस कदम को एससी-एसटी समुदाय के अधिकारों और जमीन के संरक्षण के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा, "राजस्थान भू-राजस्व नियम 2007 में संशोधन के माध्यम से एसटी-एससी वर्ग की कृषि भूमि को सोलर ऊर्जा के लिए लीज पर देना उनके अधिकारों के साथ अन्याय है। यह निर्णय हाशिये पर खड़े वर्गों के हितों के खिलाफ है। राजस्थान सरकार को इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।"

राजस्थान सरकार के इस संशोधन को लेकर विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने तीखा विरोध दर्ज कराया है। इन संगठनों का मानना है कि यह निर्णय एससी-एसटी वर्गों की आजीविका, अधिकार और सांस्कृतिक पहचान को खत्म करने की ओर बढ़ा हुआ कदम है। संगठनों, कार्यकर्ताओं ने सरकार से इस संशोधन को तुरंत वापस लेने की मांग की है। उनका कहना है कि यदि सरकार इस पर पुनर्विचार नहीं करती, तो इसे बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा।