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यूपीः गिरते जलस्तर और प्रदूषण से गंगा नदी की 'सेहत' बिगड़ी!

उत्तर प्रदेश। उत्तर भारत में गर्मी सारे रिकार्ड तोड़ रही है। इस भीषण गर्मी के कारण नदियों के जल स्तर में भी लगातार गिरावट दर्ज की गई है। इसे लेकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में एक शोध भी किया गया है। अध्ययन के मुताबिक़ गंगा नदी के कम होते जलस्तर के कारण जल में रह रहे जीवों की जान खतरे में है। पानी में लगातार हो रही ऑक्सीजन की कमी से तलहटी में रहने वाले जीव-जंतुओं को ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में न मिल पाने के कारण उनका जीवन संकट में है।

अध्ययन के मुताबिक, कानपुर और कन्नौज तक गंगा के ऑक्सीजन लेवल में काफी कमी है, जिसके कारण गंगा की तलहटी पर रह रहे जीवों का जीवन जीना मुश्किल हो गया है। शोध में कहा गया है कि यदि नदी में जलस्तर ऐसा ही रहा तो नदी में रहने वीले जीवों का बच पाना मुश्किल होगा। बीएचयू के प्रोफेसर डॉ. जितेंद्र पांडेय और उनकी टीम ने हाल ही में गंगा की स्थिति पर तीन साल तक का अध्ययन किया है।

वाराणसी में अस्सी घाट के सामने की सतह से नीचे गंगा की तलहटी में 300 मीटर के नीचे ऑक्सीजन का स्तर 3 मिग्रा/लीटर से भी कम पाया गया जो ऑक्सीजन के मानक स्तर से भी कम है। कानपुर में इसकी स्थिति और भी दयनीय है। आमतौर पर ऑक्सीजन का जल स्तर 5 से 6 मिग्रा/लीटर होना चाहिए।

गंगा में बढ़ रहा प्रदूषण बना बड़ी वजह

गंगा में प्रदूषण का कारण है सीवेज और ड्रेनेज सिस्टम है। इस सिस्टम के जरिए कार्बन और प्रदूषण जल में आसानी से घुल रहा है। बढ़ते प्रदूषण से गंगा नदी की स्वच्छता खत्म हो रही है और ऑक्सीजन का लेवल कम हो रहा है। कम होते ऑक्सीजन से जल में रहने वाले जीव मर रहे हैं। गंगा का साफ जल लगातार प्रदूषित हो रहा है।

26 जिलों की रिपोर्ट में एनजीटी ने भी उठाये थे सवाल

देश की नदियों को लेकर समाजसेवी सुप्रोवा दास ने पश्चिम बंगाल में नदियों को लेकर चिंता जताई थी। जिसके बाद कोर्ट ने सभी राज्यों में नदियों की स्थिति लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट एनजीटी से मांगी थी। उत्तर प्रदेश में बीते 24 जनवरी को यह रिपोर्ट एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने 26 जिलों से जिला गंगा समिति रिपोर्ट बनाकर कोर्ट को सौंप दी। रिपोर्ट दाखिल करने वाले इन जिलों में हरदोई, सीतापुर, श्रावस्ती, संत कबीर नगर, रामपुर, मथुरा, मैनपुरी, कानपुर देहात और जालौन आदि शामिल हैं।

हरदोई की जिला गंगा समिति रिपोर्ट में कहा गया है कि कई नालों में बीओडी, सीओडी, टीएसएस, टीडीएस, भारी धातु और नाइट्रेट जैसे विभिन्न मापदंडों का विश्लेषण नहीं किया गया है। हरदोई, शाहाबाद, बिलग्राम, सांडी और पाली जैसी नगर पालिका परिषदों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं हैं। वहीं बिलग्राम में सीवेज को बिना उपचार के सीधे गंगा में छोड़ दिया जाता है, जिससे उपचार में 100 फीसदी का अंतर आ जाता है। वहीं जब एनपीपी हरदोई में होटल/आश्रम/धर्मशालाओं की बात आती है तो स्थापना और संचालन के लिए कोई सहमति नहीं ली गई है और कोई एसटीपी स्थापित नहीं किया गया है। वहीं 12 होटलों के डिस्चार्ज प्वाइंट सड़क किनारे बनी नालियां हैं।

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