भोपाल। मध्यप्रदेश की शिक्षा व्यवस्था इन दिनों गहरे संकट में है। राज्य के कई सरकारी स्कूल आज भी बुनियादी ढांचे के अभाव में ज़मीन पर बैठकर या झोपड़ियों में संचालित हो रहे हैं। हाल ही में राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में 211 स्कूल ऐसे हैं जो बिना किसी स्थायी भवन के चल रहे हैं। लेकिन भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (NSUI) का दावा है कि यह संख्या वास्तविकता से बहुत कम है और ज़मीनी सच्चाई इससे कहीं अधिक भयावह है।
NSUI के राष्ट्रीय प्रवक्ता विराज यादव ने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाते हुए सरकार पर झूठे आंकड़े पेश करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सरकार केवल आँकड़ों की बाजीगरी में लगी है और असल में ज़्यादातर स्कूल या तो जर्जर इमारतों में चल रहे हैं या पेड़ों के नीचे, झोपड़ियों या सामुदायिक भवनों में।
“भवन” की परिभाषा का किया जा रहा दुरुपयोग
विराज यादव ने कहा, “सरकार ने ‘भवन’ की परिभाषा तक को तोड़-मरोड़ दिया है। किसी ग्रामीण की झोपड़ी, सामुदायिक भवन, या आंगनवाड़ी केंद्र को स्कूल भवन के रूप में दिखाया जा रहा है। इससे केवल फाइलों में काम पूरा होता है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा दोनों ही प्रभावित हो रही हैं।”
बड़वानी से लेकर शहडोल तक, हालात चिंताजनक
NSUI ने बड़वानी जिले के खामखाटा गाँव का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां बीते 12 वर्षों से एक स्कूल बांस और तिरपाल की झोपड़ी में चल रहा है, जहां 38 बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। स्थानीय प्रशासन और ज़िला कलेक्टर को इसकी जानकारी दी गई, निरीक्षण भी हुआ, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
ऐसी ही स्थिति सतना, डिंडोरी, बालाघाट, सिवनी, शहडोल, उमरिया, मण्डला और अलीराजपुर जैसे दर्जनों आदिवासी और ग्रामीण ज़िलों में भी देखी गई है। कई जगहों पर तो शिक्षक खुद ईंट या टिन की छतें लगाकर पढ़ाने की व्यवस्था करते हैं, ताकि बच्चों को खुले आसमान या बारिश के नीचे न बैठना पड़े।
NSUI ने रखीं पाँच अहम माँगें
NSUI ने सरकार के सामने पाँच बिंदुओं पर तत्काल कार्रवाई की माँग रखी है:
सभी भवनविहीन और खस्ताहाल स्कूलों की सूची सार्वजनिक की जाए।
स्कूल भवनों के निर्माण हेतु विशेष बजट की तत्काल घोषणा हो।
जिन ज़िम्मेदार अधिकारियों ने शिकायतों को वर्षों से नज़रअंदाज़ किया, उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए।
ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों को प्राथमिकता देते हुए निर्माण कार्य प्रारंभ कराया जाए।
स्वतंत्र जिला स्तरीय मॉनिटरिंग कमेटी गठित की जाए जो जमीनी सच्चाई का मूल्यांकन कर सके।
शिक्षा का अधिकार, सरकार की ज़िम्मेदारी
NSUI ने यह भी कहा है कि बच्चों को समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना सरकार की संवैधानिक ज़िम्मेदारी है। संविधान का अनुच्छेद 21-A सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है। इस अधिकार के तहत राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर बच्चे को उचित स्कूल भवन, आधारभूत सुविधाएँ और सुरक्षित वातावरण मिले।
अनुच्छेद 21-A – शिक्षा का अधिकार: 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देना राज्य की जिम्मेदारी है।
NSUI ने सरकार को दिया 30 दिन का अल्टीमेटम
NSUI के राष्ट्रीय प्रवक्ता विराज यादव ने द मूकनायक से बातचीत में सरकार को 30 दिनों का अल्टीमेटम देते हुए कहा, “अगर एक महीने में सरकार ने ठोस कार्यवाही नहीं की तो NSUI पूरे प्रदेश में छात्र आंदोलन छेड़ेगी। हम हर गाँव, हर स्कूल तक जाकर वहाँ की स्थिति को उजागर करेंगे। यह बच्चों के भविष्य का सवाल है और हम संविधान के अनुसार शिक्षा का अधिकार माँगते हैं, भीख नहीं।”
उन्होंने आगे कहा कि यह केवल भवन निर्माण की माँग नहीं है, बल्कि यह समाज के सबसे पिछड़े वर्गों – ग्रामीणों, आदिवासियों, दलितों – के बच्चों के भविष्य की लड़ाई है। शिक्षा के बिना सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती।