नई दिल्ली: भारत के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों ने राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखते हुए तुर्किये और अज़रबैजान के विश्वविद्यालयों के साथ अपने अकादमिक समझौते समाप्त करने शुरू कर दिए हैं। इस कदम को देश की विदेश नीति और उच्च शिक्षा क्षेत्र में हो रहे एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है।
आईआईटी रुड़की ने हाल ही में तुर्किये की इनोनू यूनिवर्सिटी के साथ जनवरी 2025 में किए गए एमओयू (समझौता पत्र) को रद्द कर दिया है। इस समझौते के तहत शोध सहयोग, छात्र एवं फैकल्टी एक्सचेंज जैसे कार्यक्रम संचालित किए जा रहे थे। संस्थान के निदेशक प्रो. कमल किशोर पंत ने कहा, “हमारे वैश्विक सहयोग हमारे देश के मूल्यों, प्राथमिकताओं और सुरक्षा चिंताओं को प्रतिबिंबित करने चाहिए।”
आईआईटी रुड़की से पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), जामिया मिल्लिया इस्लामिया, और मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (MANUU) पहले ही तुर्किये के विश्वविद्यालयों से अपने रिश्ते खत्म कर चुके हैं। छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर (सीएसजेएमयू) ने भी इसी प्रकार के एमओयू रद्द किए हैं।
इस बीच, लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (LPU) ने एक अहम फैसला लेते हुए तुर्किये और अज़रबैजान के साथ अपने छह अकादमिक समझौते रद्द कर दिए हैं। ये समझौते संयुक्त शोध, ड्यूल डिग्री प्रोग्राम और फैकल्टी व छात्र आदान-प्रदान जैसे विषयों से संबंधित थे।
एलपीयू के कुलाधिपति और राज्यसभा सांसद डॉ. अशोक कुमार मित्तल ने कहा, “देश की रक्षा केवल सीमाओं पर नहीं, बल्कि कक्षा, कॉन्फ्रेंस रूम और अंतरराष्ट्रीय सहयोगों में भी होती है। एलपीयू भारत की एकता और प्रगति में विश्वास रखता है। हम ऐसे संबंध नहीं रख सकते जो देश के सम्मान के खिलाफ हों।”
इन कदमों के पीछे प्रमुख कारण तुर्किये और अज़रबैजान का हालिया भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान पाकिस्तान के पक्ष में रुख अपनाना बताया जा रहा है।
इस बीच, एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज (AIU) ने देशभर के 1,100 से अधिक विश्वविद्यालयों को सलाह दी है कि वे पाकिस्तान, तुर्किये और बांग्लादेश के साथ अपने सभी शैक्षणिक सहयोगों की समीक्षा करें और ज़रूरत हो तो उन्हें निलंबित या समाप्त कर दें। यह अपील पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 लोगों की जान गई, के बाद सामने आई है।
AIU अध्यक्ष विनय कुमार पाठक ने कहा कि ये देश भारत-विरोधी नैरेटिव को बढ़ावा दे रहे हैं और अब भारत के शैक्षणिक संस्थानों को भी राष्ट्रीय एकता दिखाते हुए ऐसे रिश्तों पर पुनर्विचार करना चाहिए।
इन घटनाक्रमों से यह स्पष्ट है कि भारतीय विश्वविद्यालय अब अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों को केवल अकादमिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के चश्मे से भी देखने लगे हैं। जहां एक ओर भारत वैश्विक शिक्षा सहयोग को प्रोत्साहित करता है, वहीं यह भी सुनिश्चित कर रहा है कि कोई भी साझेदारी देश की संप्रभुता, अखंडता और मूल्यों के खिलाफ न जाए।