दलित प्रोफेसर की बहाली पर मद्रास हाईकोर्ट का आदेश, फिर भी इंतज़ार क्यों? जानें BIM विवाद की पूरी कहानी

01:39 PM Sep 01, 2025 | Rajan Chaudhary

तिरुचि/तमिलनाडु: अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले एक सहायक प्रोफेसर ने राज्य उच्च शिक्षा विभाग से हस्तक्षेप की अपील की है। उनका आरोप है कि भारथिदासन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (BIM) ने उन्हें बहाल नहीं किया है, जबकि मदुरै बेंच ऑफ मद्रास हाईकोर्ट ने 4 अगस्त को उनके पक्ष में आदेश जारी किया था। इस पर संस्थान के निदेशक का कहना है कि वे 90 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने पर विचार कर रहे हैं।

मामला क्या है?

डॉ. सीएनएस रामनाथ बाबू, जो BIM के पूर्व छात्र भी रहे हैं, अप्रैल 2021 में संस्थान के मार्केटिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए थे। प्रोबेशन अवधि पूरी होने के बाद, जुलाई 2023 में संस्थान के निदेशक असित के. बर्मा ने उन्हें बिना किसी नोटिस के सेवा से हटा दिया।

इस कार्रवाई को डॉ. बाबू ने अदालत में चुनौती दी। मदुरै बेंच ऑफ मद्रास हाईकोर्ट ने पहले उनकी बर्खास्तगी पर रोक लगाई और बाद में नवंबर 2023 में इसे पूरी तरह रद्द कर दिया।

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लंबी कानूनी लड़ाई

संस्थान ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की, जिससे विवाद अगस्त 2025 तक खिंचता रहा। अंततः डिवीजन बेंच ने अपील खारिज करते हुए डॉ. बाबू की बहाली का आदेश दिया। अदालत ने साफ कहा कि यदि कोई प्रोबेशनर खराब प्रदर्शन करता है तो उसे हटाया जा सकता है, लेकिन दंडात्मक या कलंकित करने वाली बर्खास्तगी बिना जांच प्रक्रिया के नहीं की जा सकती।

इस बीच, 24 अगस्त को बॉयलर प्लांट पुलिस ने निदेशक असित के. बर्मा के खिलाफ SC/ST एक्ट के तहत मामला दर्ज किया।

प्रोफेसर की पीड़ा

डॉ. बाबू ने कहा, “जुलाई 2023 से मैं इस कानूनी लड़ाई में हूँ। यह सिर्फ यह साबित करने के लिए है कि मैं एक योग्य शिक्षक और शोधार्थी हूँ। बिना आय के, हर दिन आत्मसम्मान बचाने की जंग है।”

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि संस्थान में फैकल्टी भर्ती के दौरान आरक्षण नियमों का पालन नहीं होता। डॉ. बाबू ने कहा, “मैं दूसरी नौकरी की तलाश में नहीं हूँ, क्योंकि यह लड़ाई न्याय और गरिमा की है। मुझे वही चाहिए जो मेरा अधिकार है।”

संस्थान का पक्ष

जब इस पर निदेशक असित के. बर्मा से बात की गई तो उन्होंने कहा, “हम उच्च न्यायालय का सम्मान करते हैं, लेकिन हमें 90 दिनों के भीतर सुप्रीम कोर्ट जाने का अधिकार है। हमारे संस्थान में फैकल्टी की नियुक्ति और प्रोमोशन में आरक्षण लागू नहीं होता। हम मेरिट-आधारित चयन प्रक्रिया का पालन करते हैं। साथ ही, हम कानूनी विकल्प तलाश रहे हैं।”

कानूनी विशेषज्ञों की राय

कानून विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक संस्थान सुप्रीम कोर्ट से स्टे ऑर्डर नहीं लेता, तब तक हाईकोर्ट का आदेश बाध्यकारी है। अगर इसका पालन नहीं हुआ तो यह अवमानना मानी जाएगी।

सरकार का रुख

इस पूरे मामले पर उच्च शिक्षा मंत्री गोवी चेज़ियन ने आश्वासन दिया है कि विभाग इस पर गंभीरता से विचार करेगा और आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।