MP: श्योपुर में दलित युवक के अंतिम संस्कार करने से रोका, सड़क पर शव रखकर परिजनों ने किया प्रदर्शन

06:39 PM Apr 29, 2025 | Ankit Pachauri

भोपाल। मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के विजयपुर विधानसभा क्षेत्र के लीलदा गांव में सोमवार को जातिगत तनाव ने एक बार फिर प्रशासन की संवेदनशीलता और सामाजिक ताने-बाने को कठघरे में खड़ा कर दिया। गांव के दलित समाज के युवक जगदीश जाटव के शव का अंतिम संस्कार करने से रावत समाज के लोगों ने विरोध किया, जिसके बाद मामला इतना बढ़ा कि शव को सड़क पर रखकर प्रदर्शन हुआ और पथराव की स्थिति तक बन गई। प्रशासनिक अमले के हस्तक्षेप के बावजूद तनाव बना हुआ है।

जानिए पूरा मामला?

लीलदा गांव निवासी जगदीश जाटव बेंगलुरु में प्राइवेट नौकरी करता था। सड़क हादसे में उसकी मौत हो गई थी। पांच दिन बाद सोमवार सुबह करीब 10 बजे उसका शव गांव लाया गया। दोपहर 1 बजे जब परिजन शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जा रहे थे, तब रावत समाज के लोगों ने विरोध जताया। इसी विरोध के चलते विवाद बढ़ गया।

श्मशान भूमि नहीं, सरकारी ज़मीन पर भी रोका गया अंतिम संस्कार

जाटव समाज की महिलाओं का कहना है कि उनके समाज के श्मशान की ज़मीन रेलवे प्रोजेक्ट में चली गई है, जिस कारण उनके पास कोई वैकल्पिक ज़मीन नहीं है। परिजन का कहना है कि पटवारी द्वारा सरकारी भूमि अंतिम संस्कार के लिए दी गई थी, लेकिन रावत समाज के लोग इसका विरोध कर रहे हैं।

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ग्रामीण सुरेश जाटव ने बताया, "ये सरकारी ज़मीन है, किसी के नाम पर पट्टा नहीं है। इसके बावजूद रावत समाज के लोग हमें शव जलाने नहीं दे रहे।"

वहीं रावत समाज की महिलाओं ने कहा, "हमारे खेत में शव नहीं जलाने देंगे। यहां हम खेती करते हैं। उन्हें कहीं और जगह अंतिम संस्कार करना है, तो करें।"

तनाव के बीच चक्काजाम

अंतिम संस्कार न करने देने से आक्रोशित जाटव समाज के लोगों ने शव को सड़क पर रखकर चक्काजाम कर दिया। प्रदर्शन के दौरान पत्थरबाजी भी हुई। मौके पर विजयपुर एसडीएम अभिषेक मिश्रा सहित प्रशासनिक अमला पहुंचा। कलेक्टर अर्पित वर्मा ने बताया कि "घटना स्थल पर हालात पूरी तरह सामान्य नहीं हैं, शांति व्यवस्था बनाए रखने का प्रयास किया जा रहा है।"

क्या है कानूनी प्रावधान?

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989

धारा 3(1)(zc) – किसी अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति को अंतिम संस्कार या धार्मिक रीतियों के पालन से रोकना दंडनीय अपराध है। जिसके लिए छह माह से पांच वर्ष तक की सजा और जुर्माना से दंडित किया जा सकता है।

कांग्रेस का हमला, FIR की मांग

विजयपुर (श्योपुर) क्षेत्र के कांग्रेस विधायक मुकेश मल्होत्रा ने घटना पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कलेक्टर और एसपी से बात कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। उन्होंने कहा, “दलित युवक का अंतिम संस्कार नहीं करने दिया गया, मारपीट और पथराव तक हुआ। ऐसी घटनाएं समाज में जहर घोलती हैं। अगर FIR नहीं हुई तो हम आंदोलन करेंगे,”

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने भी इस घटना को लेकर सरकार पर हमला बोला। उन्होंने एक्स (ट्वीट) कर लिखा – “विजयपुर क्षेत्र में नफरत की चिंताजनक घटना हुई है। चुनावी हार से बौखलाए रामनिवास रावत समर्थित गुंडे दलित समुदाय को अंतिम संस्कार नहीं करने दे रहे हैं। यह सरकारी गुंडागर्दी है, और सरकार अपनी आपराधिक चुप्पी में कायम है।”

पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता कमलनाथ ने श्योपुर जिले में दलित समाज के व्यक्ति के अंतिम संस्कार को रोके जाने की घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि भाजपा के शासन में प्रदेश में दलितों पर हर स्तर पर अत्याचार हो रहा है, अब तो अंतिम संस्कार जैसे मानवीय कार्यों में भी जातिगत भेदभाव किया जा रहा है।

सामाजिक न्याय कहाँ?

घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या मध्यप्रदेश में अनुसूचित जातियों को संवैधानिक अधिकारों के अनुसार सम्मान और न्याय मिल रहा है? दलित समुदाय के लोगों को अंतिम संस्कार जैसे मौलिक अधिकार से वंचित करने की कोशिश संविधान के अनुच्छेद 17 और सामाजिक न्याय की अवधारणाओं का स्पष्ट उल्लंघन है।

उच्च पदों पर बैठे अधिकारी मनुवादी सोच से ग्रसित: अहिरवार

मध्यप्रदेश राज्य अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व सदस्य और कांग्रेस नेता प्रदीप अहिरवार ने द मूकनायक से बातचीत करते हुए कहा कि प्रदेश में दलित समुदाय पर अत्याचार की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रदेश की कानून व्यवस्था कमजोर हो चुकी है। उन्होंने कहा कि मंदिरों, स्कूलों और सार्वजनिक स्थलों पर दलितों के साथ हो रहे भेदभाव और हिंसा के मामलों में पुलिस की निष्क्रियता सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करती है।

प्रदीप अहिरवार ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री मोहन यादव की सरकार इन घटनाओं को रोकने में पूरी तरह विफल रही है। उन्होंने कहा कि सरकार में बैठे कई उच्च पदस्थ अधिकारी मनुवादी सोच से ग्रसित हैं, जो दलितों को सामाजिक न्याय और समानता से वंचित रखना चाहते हैं। ऐसे अधिकारियों और नेताओं के संरक्षण में ही ऐसे अत्याचार पनप रहे हैं।