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MP: जबलपुर के प्रतिभा स्थली विद्यालय में दलित महिला और बच्ची से भेदभाव का मामला: राज्य अनुसूचित जाति आयोग ने मांगी रिपोर्ट

भोपाल। मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित प्रतिभा स्थली ज्ञानोदय विद्यालय में अनुसूचित जाति वर्ग की एकल मां और उनकी बेटी के साथ हुए जातिगत भेदभाव के मामले ने मध्य प्रदेश राज्य अनुसूचित जाति आयोग को कड़ी कार्रवाई के लिए बाध्य कर दिया है। आयोग ने इस गंभीर प्रकरण में संज्ञान लेते हुए जबलपुर के सहायक आयुक्त, जनजातीय कार्य विभाग से 15 दिनों के भीतर जांच रिपोर्ट मांगी है। साथ ही यह भी निर्देश दिया गया है कि यदि स्कूल द्वारा शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 अथवा संविधान के अनुच्छेद 21(ए) का उल्लंघन किया गया है, तो दोषियों के खिलाफ आवश्यक विधिक कार्यवाही की जाए।

यह मामला तब प्रकाश में आया जब बीते साल ‘द मूकनायक’ ने इस विषय पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की। रिपोर्ट में बताया गया कि जबलपुर की रहने वाली अनुसूचित जाति समुदाय की सुनीता आर्या ने अपनी बेटी का कक्षा 4 में प्रवेश कराने के लिए प्रतिभा स्थली विद्यालय में आवेदन दिया था। लेकिन विद्यालय प्रशासन ने न केवल उन्हें प्रवेश देने से इनकार कर दिया, बल्कि उनके साथ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए अपमानजनक व्यवहार किया। उनके साथ सिर्फ इसलिए भेदभाव हुआ कि वह दलित है और उनकी बेटी लिविंग रिलेशनशिप के दौरान पैदा हुई जो जैविक रूप से जैन (सामान्य) है।

सुनीता आर्या का आरोप है कि विद्यालय प्रशासन ने उन्हें उनके जातीय परिचय के आधार पर ही नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा और बातचीत के दौरान ‘अहिरवार’, ‘चमार’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया। इसके अलावा, स्कूल प्रशासन ने यह सवाल भी उठाया कि बच्ची की पारिवारिक स्थिति क्या है, क्योंकि सुनीता आर्या एक एकल मां हैं।

सुनीता ने अपने आवेदन के साथ डीएनए परीक्षण रिपोर्ट भी संलग्न की थी, जिससे यह प्रमाणित होता है कि बच्ची उनकी और उनके पार्टनर मनीष जैन की जैविक संतान है और किसी प्रकार की पहचान को लेकर कोई संदेह नहीं होना चाहिए। बावजूद इसके, विद्यालय ने बच्ची को प्रवेश नहीं दिया।

द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत में सुनीता आर्या बताती हैं कि उन्होंने जबलपुर के प्रतिभा स्थली विद्यालय में अपनी बेटी का कक्षा 4 में दाखिला कराने के लिए आवेदन दिया था। लेकिन स्कूल प्रशासन ने उनका आवेदन यह कहते हुए ठुकरा दिया कि बच्ची की पारिवारिक स्थिति स्पष्ट नहीं है। सुनीता का कहना है कि उन्होंने डीएनए रिपोर्ट तक लगाई, जिससे यह साबित होता है कि बच्ची उनकी और मनीष जैन की ही संतान है, जो जैन समुदाय से है। फिर भी उन्हें जातिगत आधार पर अपमानित किया गया। स्कूल वालों ने उन्हें 'अहिरवार' और 'चमार' जैसे अपमानजनक शब्दों से बुलाया।

सुनीता का आरोप है कि विद्यालय प्रशासन ने उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। उन्होंने यह भी बताया कि स्कूल प्रबंधन की ओर से व्हाट्सएप पर की गई बातचीत में भी जातिसूचक भाषा का इस्तेमाल किया गया, जिसकी प्रतियां उन्होंने अनुसूचित जाति आयोग को सौंपी हैं। सुनीता कहती हैं कि एक मां होने के नाते वह चाहती थीं कि उनकी बेटी एक अच्छे स्कूल में पढ़े, लेकिन जाति और लिविंग के दौरान जन्मी बेटी के कारण उनके साथ अन्याय हुआ।

मानसिक उत्पीड़न का आरोप, आयोग को सौंपे गए सबूत

सुनीता ने आयोग को सौंपे गए आवेदन में दावा किया है कि विद्यालय प्रबंधन द्वारा उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और भेदभावपूर्ण व्यवहार किया गया। उन्होंने स्कूल से हुई व्हाट्सएप बातचीत के स्क्रीनशॉट्स और अन्य दस्तावेज भी आयोग को सौंपे हैं, जिनमें स्कूल द्वारा किए गए जातिगत व्यवहार और असंवेदनशील टिप्पणियों का उल्लेख है।

इसके अतिरिक्त, सुनीता आर्या ने इस मामले की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट को भी खारिज किया है और आयोग को भेजे गए प्रतिवाद में कहा है कि जांच में तथ्य छिपाए गए हैं तथा मनगढ़ंत तरीके से निष्कर्ष निकाले गए हैं।

आयोग की सख्ती:

मामले की गंभीरता को देखते हुए आयोग ने इस प्रकरण में स्पष्ट किया है कि यदि तय समय सीमा (15 दिन) में जवाब प्राप्त नहीं होता है तो वह सिविल न्यायालय की भांति प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई करेगा।

राज्य अनुसूचित जाति आयोग की सचिव सीमा सोनी ने बताया कि आयोग इस मामले को संविधान के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देख रहा है और यदि दोष साबित होते हैं, तो विद्यालय प्रबंधन पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत कार्यवाही की जा सकती है।

क्या है कानूनी प्रावधान?

1. शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009

6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार देता है।

2. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21(ए)

प्रत्येक बच्चे को प्राथमिक शिक्षा का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।

3. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989

किसी भी अनुसूचित जाति या जनजाति व्यक्ति के साथ जातीय आधार पर भेदभाव या अपमान करने पर कठोर दंड का प्रावधान करता है।

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