इडुक्की - केरल के इडुक्की जिले के स्लीवमाला स्थित सेंट बेनेडिक्ट्स एलपी स्कूल में एक जातिगत भेदभाव का मामला सामने आया है, जिसमें एक छह साल के दलित छात्र को अपने साथी छात्र की उल्टी साफ करने के लिए मजबूर किया गया। स्कूल प्रिंसिपल और शिक्षा विभाग को दी गई शिकायतों के बावजूद टीचर के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई, जिससे बच्चे के परिजन और दलित अधिकारों के पैरवीकार क्षुब्ध हैं। बच्चे की माँ ने शुक्रवार को स्थानीय पुलिस स्टेशन में औपचारिक शिकायत दर्ज करवाई।
13 नवंबर को दूसरी कक्षा के छात्र प्रणव सिजॉय को उसकी कक्षा की शिक्षिका मारिया जोसेफ ने पूरी क्लास के सामने चिल्लाकर गुस्से से अपने बीमार सहपाठी की उल्टी साफ करने के लिए कहा , जिससे बच्चे के मन में गहरा सदमा लगा ।
बच्चे की माँ प्रियंका सोमन के अनुसार, एक बच्चे द्वारा क्लास में उल्टी कर देने पर पहले शिक्षिका ने सभी छात्रों को गंदगी पर रेत डालने को कहा, फिर पढ़ाई फिर से शुरू हो गई। बाद में शिक्षिका ने प्रणव को अकेले ही गंदगी साफ करने के लिए कहा।
जब प्रणव ने कहा कि वह अपनी पढ़ाई करना चाहता है, तो शिक्षिका ने गुस्से में उसे उंगली दिखाकर जोर से डांटा और उसे साफ करने को मजबूर किया। डर से कांपते हुए और रोते हुए प्रणव ने यह काम किया जबकि उसके सहपाठी उसे देख रहे थे। प्रणव के दोस्त निकेत ने टीचर को कहा वो भी प्रणव की मदद करेगा लेकिन शिक्षिका ने मना करते हुए कहा कि केवल प्रणव ही यह काम करेगा।
The Mooknayak से बात करते हुए, प्रियंका ने बताया कि उनके बेटे ने तुरंत इस घटना के बारे में नहीं बताया। "अगले दिन सुबह, प्रणव रोने लगा और स्कूल जाने से मना कर दिया, क्योंकि वह डर रहा था कि उसे फिर से डांटा जाएगा। मैंने सोचा कि यह शायद क्लास में कुछ खराब प्रदर्शन के कारण है, तो मैंने उसे समझाया और कहा कि अगर वह अपनी पढ़ाई में सुधार करेगा, तो टीचर उसे डांटेंगे नहीं। मुझे नहीं पता था कि मेरा छोटा सा बच्चा कितनी ट्रौमा से गुजर रहा था।"
यह पूरी कहानी प्रियंका को 20 नवम्बर को ही पता चली। एक बस में निकेत की माँ से आकस्मिक मुलाकात के दौरान दोनों ने बच्चों की सेहत और स्कूल के माहौल के बारे में बात की। निकेत की माँ ने उल्टी की घटना का जिक्र किया और बताया कि प्रणव को उसे साफ करने के लिए मजबूर किया गया था। यह सुनकर प्रियंका चौंकी और परेशान हो गईं, और तुरंत स्कूल के प्रिंसिपल से संपर्क किया।
शुरुआत में प्रिंसिपल को इस घटना के बारे में जानकारी नहीं थी, लेकिन उन्होंने मामला पता करने के बाद बात करने को कहा। बाद में, प्रिंसिपल ने घटना की पुष्टि की और शिक्षिका को चेतावनी देने की बात कही। प्रियंका ने बताया कि जब उसने पूछा कि क्या ऐसी शिक्षिका को एक बच्चे के साथ भेदभाव करने के लिए बस चेतावनी ही मिलेगी तो प्रिंसिपल ने कहा कि यह स्कूल प्रबंधन द्वारा की जा सकने वाली अधिकतम कार्रवाई होगी। इस जवाब से असंतुष्ट होकर प्रियंका ने सहायक शिक्षा अधिकारी (AEO) के पास लिखित शिकायत दर्ज करवाई। हालांकि, AEO के कर्मचारियों ने समझाया कि चूंकि सेंट बेनेडिक्ट्स एक सहायता (aided) प्राप्त स्कूल है, उनके पास शिक्षक के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार सीमित है।
प्रियंका ने बताया कि स्कूल मैनेजमेंट इस स्थिति की गंभीरता को लेकर उदासीन हैं वहीं शिक्षा विभाग से भी कोई संतोषजनक रेस्पोंस नहीं मिला। "प्रिंसिपल ने केवल चेतावनी देने का सुझाव दिया, लेकिन यह तो पूरी तरह से जातिगत भेदभाव है। मेरे बच्चे को उसके सहपाठियों के सामने अपमानित किया गया। ऐसे शिक्षक को कक्षा में कैसे रहने दिया जा सकता है?"
डेटा एंट्री ऑपरेटर के रूप में काम करने वाली प्रियंका, और उनके पति, जो पेशे से मिस्त्री हैं, इस घटना के कारण अपने बच्चे पर पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर चिंतित हैं। प्रियंका कहती हैं, "अब प्रणव स्कूल जाने से डरता है। उसके मन में भय बैठ गया है, हमें चिंता है कि यह उसके आत्मविश्वास और भविष्य की पढ़ाई पर कैसे असर डालेगा" ।
अपने बेटे के लिए न्याय का दृढ़ निश्चय करते हुए, प्रियंका ने शुक्रवार को स्थानीय पुलिस स्टेशन में एक औपचारिक शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने यह तय किया कि वह इस मामले को आगे बढ़ाएंगी ताकि कोई भी बच्चा फिर से इस तरह के भेदभावपूर्ण व्यवहार का सामना न करे।
वो कहती हैं, "यह छह साल के बच्चे के लिए एक दर्दनाक अनुभव है, शिक्षिका को उसे इस तरह के अपमानजनक काम में मजबूर करने का कोई अधिकार नहीं था, जब स्कूल में ऐसे कार्यों के लिए सफाई कर्मचारी नियुक्त किए गए हैं। यह साफ-साफ लापरवाही और जातिवाद है।"
इस घटना ने दलित अधिकार कार्यकर्ताओं और अभिभावकों में गुस्से की लहर पैदा कर दी है। कई जनों ने कार्रवाई नहीं करने को लेकर शिक्षा विभाग की आलोचना की. उनका कहना है कि स्कूल की निष्क्रियता जातिवाद आधारित भेदभाव और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के प्रति लापरवाही को दर्शाती है। वे यह भी कहते हैं कि इस मामले की उचित जांच होनी चाहिए। यदि शिक्षिका दोषी पाई जाती है, तो उसे बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। लेकिन प्रबंधन की ओर से शिकायत के बावजूद कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
जातिविरोधी कार्यकर्ता और दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉ. रेहना रवींद्रन कहती हैं , "केरल में अल्पसंख्यक समूह (मिशनरीज) द्वारा चलाए जाने वाले शैक्षिक संस्थानों में दलित बच्चों के खिलाफ जातिवादी हिंसा के कई मामले रिपोर्ट नहीं होते हैं, क्योंकि वहां कोई शिकायत निवारण तंत्र नहीं होता और प्रबंधन द्वारा उत्पीड़न का डर होता है। यह मामला तो महज बर्फ के पहाड़ की नोक है"।
उन्होंने आगे कहा, "यह स्कूल एक क्रिश्चियन प्रबंधन द्वारा चलाया जा रहा है, जिसे तथाकथित अल्पसंख्यक संस्थान कहा जाता है। स्कूल में हाशिए पर रहने वाले बच्चों के खिलाफ शिक्षकों द्वारा की जाने वाली जातिवादी हिंसा को रोकने के लिए कोई तंत्र नहीं है।"
The Mooknayak ने शिक्षा विभाग से इस घटना पर जानकारी प्राप्त करने के लिए संपर्क किया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। इसके अलावा, स्कूल प्रिंसिपल, सुसम्मा जोसेफ से मैनेजमेंट का पक्ष जानने और टीचर के विरूद्ध उठाए गए कदमों के बारे में पूछने के लिए मेसेज भेजा गया। दोनों पक्षों से कोई प्रतिक्रिया प्राप्त होने पर खबर को अपडेट किया जाएगा।