बेंगलुरु- भारतीय प्रबंधन संस्थान बेंगलुरु (IIMB) के के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गोपाल दास द्वारा लगाये गए जाति-आधारित भेदभाव के आरोपों के बाद , संस्थान इन दिनों विवादों में घिरा हुआ है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के आदेश पर किये गए जांच में नागरिक अधिकार प्रवर्तन निदेशालय (DCRE) ने डॉ. दास के आरोपों की पुष्टि की है। लेकिन IIMB ने हाल ही में एक प्रेस बयान जारी कर इन आरोपों से इनकार किया है। इस कदम से बहुजन संगठनों और कार्यकर्ताओं में रोष फैल गया है, जिन्होंने संस्थान के जवाब को जवाबदेही से बचने का प्रयास बताया है।
DCRE की जांच रिपोर्ट (संख्या 86/HP/DCRE/2024), जो 26 नवंबर को कर्नाटक समाज कल्याण विभाग को सौंपी गई, में निदेशक, डीन (संकाय) और छह अन्य संकाय सदस्यों द्वारा व्यवस्थागत जाति भेदभाव और संवैधानिक उल्लंघन का खुलासा हुआ। रिपोर्ट में IIMB पर वंचित वर्ग के संकाय सदस्य के खिलाफ प्रतिकूल माहौल बनाने की पुष्टि की गई , जिसके बाद समाज कल्याण आयुक्त ने 9 दिसंबर को दोषी अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया।
दस दिनों तक भी इस मामले में पुलिस द्वारा कोई कारवाई नहीं की गई लेकिन 19 दिसंबर को 'द मूकनायक' में DCRE रिपोर्ट के निष्कर्षों के प्रकाशन के बाद, बहुजन कार्यकर्ताओं और अन्य मीडिया संस्थानों के दबाव में अगले दिन एफआईआर दर्ज की गई। हालांकि, एक नवीनतम घटनाक्रम में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने DCRE रिपोर्ट से उत्पन्न सभी कार्यवाही पर रोक लगा दी है।
द मूकनायक द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के बाद IIMB ने एक बयान जारी किया जिसमे डॉ. गोपाल दास द्वारा लगाए गए जातिगत भेदभाव के आरोपों को सख्ती से खारिज कर दिया।
IIM ने क्या कहा
IIMB ने अपने स्टेटमेंट में बताया कि डॉ. दास के आरोप तब सामने आए जब उनकी प्रोमोशन आवेदन को डॉक्टोरल (शोध) छात्रों द्वारा उनके खिलाफ दर्ज की गई उत्पीड़न की शिकायतों के कारण रोक दिया गया। संस्थान ने बताया कि एक आंतरिक जांच, जिसमें एक प्रतिष्ठित एससी समुदाय के अकादमिक शामिल थे, ने छात्रों की शिकायतों को सही पाया। इसके बाद, IIMB की विविधता और समावेश शिकायत निवारण समिति (DIGRC) ने डॉ. दास की उत्पीड़न और भेदभाव की शिकायतों की जांच की और उन्हें निराधार पाया।
IIMB ने बयान में कहा कि 2018 में डॉ. दास की नियुक्ति के बाद से संस्थान ने उन्हें पर्याप्त समर्थन दिया है। उन्हें उनके अनुभव और योग्यता के आधार पर सहायक प्रोफेसर के बजाय एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया। इसके अलावा, उन्हें प्रतिस्पर्धी प्रोत्साहन और जिम्मेदारियों जैसे इंस्टीट्यूशनल रिव्यू बोर्ड के चेयरपर्सन, करियर डेवलपमेंट सर्विसेज कमेटी के सदस्य और विविधता और समावेश समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया। साथ ही, उन्हें अपनी पसंद के कोर्स पढ़ाने की स्वतंत्रता दी गई।
बहुजन कार्यकर्ताओं ने की IIMB के बचाव की आलोचना
अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर के सदस्य और प्रमुख जाति-विरोधी कार्यकर्ता अनिल एच वागडे ने IIMB के बयान की कड़ी आलोचना की। उन्होंने संस्थान के दावों का व्यवस्थित खंडन करते हुए कहा कि डॉ. दास के खिलाफ लगाए गए आरोप "स्पष्ट रूप से झूठे, बदले की भावना से प्रेरित और अपमानजनक" हैं।
'द मूकनायक' से बात करते हुए वागडे ने कहा, "संस्थान का दावा कि डॉ. गोपाल दास ने स्वेच्छा से अपनी जाति का खुलासा किया, झूठा और निराधार है। IIM बेंगलुरु ने सभी जनसांख्यिकीय और सामाजिक जानकारी मांगी थी, इसलिए प्रो. गोपाल दास ने अपनी जाति की जानकारी अन्य जनसांख्यिकीय विवरणों के साथ केवल एक व्यक्ति, डीन (संकाय) को प्रशासनिक उपयोग के लिए दी थी, जो मानक भर्ती प्रक्रिया के अनुरूप है।
उन्होंने 12 दिसंबर 2017 को सामान्य श्रेणी से आवेदन किया था। हालांकि, आरोपी डीन (संकाय) ने 29 जनवरी 2018 को सभी पीएचडी छात्रों और संकाय को सामूहिक ईमेल के माध्यम से उनकी जाति का खुलासा कर दिया। प्रो. दास की भर्ती सामान्य श्रेणी से हुई थी, और कई आरोपियों ने भर्ती का विरोध किया था। IIM बेंगलुरु ने भारत सरकार के निर्देश के बाद 2019 के अंत में आरक्षण शुरू किया; प्रो. दास को जनवरी 2018 में नियुक्ति दी गई थी।"
IIM बेंगलुरु के इस दावे का खंडन करते हुए कि संस्थान ने समान अवसर नहीं नकारे, वागडे ने कहा कि अप्रैल 2018 में अपनी नियुक्ति के बाद से, डॉ. गोपाल दास को लगातार अपने अधिकारों, समान अवसरों, सम्मान और कल्याण के लिए संघर्ष करना पड़ा है।
वागडे के अनुसार, डॉ. दास को अपने कार्यकाल के दौरान जाति-आधारित भेदभाव और उत्पीड़न की 100 से अधिक घटनाओं का सामना करना पड़ा है।
विशिष्ट उदाहरण देते हुए, वागडे ने बताया कि आरोपी निदेशक और प्रशासन ने व्यवस्थित रूप से डॉ. दास के शिक्षण अवसरों को सीमित किया। हालांकि संस्थान ने दावा किया कि एमबीए वैकल्पिक पाठ्यक्रम की पेशकश छात्र वरीयताओं पर निर्भर करती थी, उन्होंने कथित तौर पर यह सुनिश्चित किया कि डॉ. दास को अपने पाठ्यक्रमों को प्रभावी ढंग से चलाने के लिए पर्याप्त सहायता, जैसे शिक्षण सहायक, न मिले। उनके वैकल्पिक पाठ्यक्रम अक्सर केवल एक या दो सेमेस्टर के बाद बंद कर दिए जाते थे, और उन्हें कोई मुख्य पाठ्यक्रम नहीं सौंपा गया। इसके अलावा, एमबीए पाठ्यक्रम बिडिंग प्रक्रिया के दौरान डॉ. दास का नाम कथित तौर पर छिपाया गया, जिसे वागडे ने अपमानजनक बताया।
इसके अलावा, वागडे ने जोर देकर कहा कि डॉ. दास को संस्थान की प्रमुख गतिविधियों और समितियों में भाग लेने से बाहर रखा गया। उत्कृष्ट शिक्षण प्रतिक्रिया प्राप्त करने और उल्लेखनीय शोध और प्रकाशन करने के बावजूद, उन्हें पीएचडी शिक्षण में समान अवसर से वंचित रखा गया, जो आरोपी व्यक्तियों के नियंत्रण में था।
वागडे ने तर्क दिया कि ये कार्रवाइयां संस्थान में डॉ. दास को हाशिए पर धकेलने का जानबूझकर किया गया और निरंतर प्रयास दर्शाती हैं। उन्होंने आगे कहा कि डॉ. दास के उत्कृष्ट प्रदर्शन के बावजूद, जिसमें 2,000 से अधिक कार्य अंक (IIM बेंगलुरु में पदोन्नति के लिए आवश्यक 200 कार्य अंकों से कहीं अधिक) शामिल हैं, उनकी पूर्ण प्रोफेसर के पद पर पदोन्नति में बार-बार देरी और बाधाएं आई हैं।
डॉ. दास ने शुरू में 2021 में पदोन्नति के लिए आवेदन किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने मार्च 2022 में फिर से आवेदन किया, और जनवरी 2023 तक, एक बाहरी भर्ती समिति ने उनकी पदोन्नति की सिफारिश की थी। "जब बाहरी भर्ती समिति ने उनकी पदोन्नति की सिफारिश की, तो 3-4 साल पहले पढ़ाए गए बेबस (vulnerable) पीएचडी छात्रों को झूठी और गुमनाम शिकायतें दर्ज करने के लिए प्रेरित किया गया। शिकायतों की प्रतियां प्रो. दास के साथ साझा नहीं की गईं," वागडे ने कहा।
उन्होंने आगे आरोप लगाया कि इस सिफारिश के बाद एक प्रतिशोधात्मक कदम उठाया गया - एक प्री-डॉक्टोरल छात्र को कथित तौर पर डॉ. दास के खिलाफ यौन उत्पीड़न की झूठी शिकायत दर्ज करने के लिए प्रेरित किया गया।
IIMB के निदेशक ने बाद में संस्थान की अनुशासनात्मक समिति को शिकायत की जांच करने का निर्देश दिया।
IIM बेंगलुरु की आंतरिक समिति (IC) की जांच में डॉ. दास के खिलाफ लगाए गए आरोप निराधार और प्रेरित पाए गए, जिससे उन्हें सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया। इसके विपरीत, IC ने IIMB के निदेशक, ऋषिकेश टी. कृष्णन को POSH अधिनियम, 2013 के तहत गोपनीयता मानदंडों का उल्लंघन करने का दोषी पाया।
निदेशक ने एक सामूहिक ईमेल में डॉ. दास के खिलाफ लगे आरोपों का खुलासा किया था, जो गोपनीयता मानकों का उल्लंघन था। IC की निदेशक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिससे जवाबदेही और निष्पक्षता के प्रति संस्थान की प्रतिबद्धता पर सवाल उठे।
जांच प्रक्रिया को प्रभावित करने के प्रयास के आरोप के जवाब में, वागडे ने इसे झूठा बताया। उन्होंने बताया कि संबंधित महिला पीएचडी छात्रा को डॉ. दास के पाठ्यक्रम "RPCB" के एक असाइनमेंट में साहित्यिक चोरी (plagiarism) का दोषी पाया गया था।
यह निर्धारण पीएचडी कार्यालय समिति द्वारा किया गया था, जिसकी अध्यक्षता प्रो. अनंत कृष्णमूर्ति (जो पीएचडी अध्यक्ष भी हैं) ने की थी, साथ में प्रो. शैनेश जी (जिन पर जाति भेदभाव का आरोप लगा है) और प्रो. रेजी जॉर्ज (IIMB बोर्ड के सदस्य) थे। समिति ने छात्रा को कम ग्रेड देकर दंडित किया, यह निर्णय डॉ. दास से असंबंधित था।
वागडे ने आगे आरोप लगाया कि उसी छात्रा को बाद में डॉ. दास के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज करने के लिए प्रेरित किया गया। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस शिकायत की पूरी तरह से जांच की गई और अंततः इसे निराधार पाया गया। वगडे के अनुसार, यह इस दावे की निराधार प्रकृति को दर्शाता है कि डॉ. दास ने किसी भी जांच प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का प्रयास किया।
Ambedkar Center for Justice and Peace (ACJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नागसेन सोनारे ने बताया मामले में हाई कोर्ट दवारा 2 जनवरी 2025 तक कार्यवाही पर रोक लगा दी गई है जो बेहद दुखद और घृणित है। मीडिया को यह सवाल उठाना चाहिए कि कैसे जातिगत अत्याचार के आरोपी और उसकी टीम के सदस्य इतनी जल्दी राहत पा जाते हैं?
अखिल भारतीय ओबीसी छात्र संघ (AIOBCSA) के अध्यक्ष किरण कुमार गौड़ ने संस्थान में कानून के प्रावधान अनुसार आवश्यक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी प्रकोष्ठों की स्थापना नहीं करने और शिकायत निवारण तंत्र में समुदाय के प्रतिनिधियों को शामिल नहीं करने की कड़ी निन्दा की। उन्होंने नैतिक आधार पर निदेशक के इस्तीफे की भी मांग की।
'द मूकनायक' ने IIMB के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष डॉ. देवी प्रसाद शेट्टी को संस्थान निदेशक सहित आठ प्रोफेसरों के खिलाफ दर्ज एफआईआर के मद्देनजर भविष्य की कार्रवाई पर स्पष्टता मांगते हुए एक मेल भेजा, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है।