आंध्र हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: दलित ईसाई नहीं उठा सकते SC/ST एक्ट का लाभ, जानिये क्या है पूरा केस

11:21 AM May 05, 2025 | Geetha Sunil Pillai

अमरावती- आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में गुंटूर जिले के पित्तलावानीपालेम मंडल के कोठापालेम गांव के निवासी अक्काला रामी रेड्डी और अन्य याचिकर्ताओं के खिलाफ विशेष सत्र और SC/ST कोर्ट, गुंटूर में दर्ज Spl.SC.No.36 of 2021 को रद्द कर दिया है।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि शिकायतकर्ता (प्रतिवादी), जो पिछले 10 वर्षों से एक पादरी के रूप में कार्यरत है, ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST एक्ट) का दुरुपयोग किया और एक झूठी शिकायत दर्ज की। कोर्ट ने यह भी माना कि शिकायतकर्ता, जो ईसाई धर्म में परिवर्तित हो चुका है, SC/ST एक्ट के तहत संरक्षण का दावा नहीं कर सकता।

ये है पूरा मामला

यह विवाद गुंटूर जिले के कोठापालेम गांव का है, जहां शिकायतकर्ता अपनी पत्नी सौजन्या और दो बच्चों, जेडसन पॉल (7 वर्ष) और महिमा पॉल (5 वर्ष) के साथ पिछले 11 वर्षों से रह रहा था। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि वह एक पादरी के रूप में कार्य करता है और पिछले 10 वर्षों से गांव में डोमा कोटि रेड्डी के घर पर रविवार की प्रार्थना सभाएं आयोजित करता है, जिसमें 20-30 लोग भाग लेते हैं। उसने यह भी कहा कि उसने गांव के शांतिपूर्ण माहौल को बिना किसी व्यवधान के प्रार्थनाएं आयोजित कीं।

हालांकि, 26 जनवरी 2021 को शिकायतकर्ता ने टी.सांडोले पुलिस स्टेशन में एक शिकायत दर्ज की, जिसमें आरोप लगाया गया कि दिसंबर 2020 में उसे कई फोन नंबरों से धमकी भरे कॉल आए, जिनमें उसकी जाति के आधार पर अपमान किया गया और उसे और उसके परिवार को खत्म करने की धमकी दी गई। शिकायत में यह भी कहा गया कि 3 जनवरी 2021 को, जब वह डोमा कोटि रेड्डी के घर पर प्रार्थना सभा आयोजित कर रहा था, तो पहला आरोपी (अक्काला रामी रेड्डी) ने उसे बुलाया, थप्पड़ मारा और मुक्का मारा। शिकायतकर्ता ने कहा कि ईसाई धर्म के प्रेम के कारण उसने पहले आरोपी को माफ कर दिया।

इसके अलावा, शिकायत में 24 जनवरी 2021 की एक अन्य घटना का उल्लेख किया गया, जिसमें शिकायतकर्ता ने दावा किया कि प्रार्थना सभा के बाद घर लौटते समय, अक्काला रामी रेड्डी और 25 अन्य लोगों ने उसे रोका, उस पर हमला किया और उसकी जाति के आधार पर अपमानित करते हुए उसे और उसके परिवार को खत्म करने की धमकी दी। इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(r), 3(1)(s), 3(2)(va) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 341, 506, 323, और 34 के तहत मामला दर्ज किया।

पुलिस ने जांच के बाद चार्जशीट दाखिल की, जिसमें 10 गवाहों के बयान और बापटला क्षेत्रीय अस्पताल के मेडिकल ऑफिसर का बयान शामिल था, जिसने शिकायतकर्ता की चोट को सामान्य बताया। चार्जशीट के आधार पर मामला Spl.SC.No.36 of 2021 के रूप में IV अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश-सह-SC/ST कोर्ट, गुंटूर में दर्ज किया गया।

याचिकाकर्ताओं (अक्काला रामी रेड्डी और अन्य) की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि SC/ST एक्ट के तहत दर्ज FIR कानूनन गलत है। उन्होंने कहा कि शिकायतकर्ता ने स्वयं स्वीकार किया है कि वह एक पादरी है और रविवार की प्रार्थनाएं आयोजित करता है। वकील ने तर्क दिया कि ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाला व्यक्ति अनुसूचित जाति का सदस्य होने का दावा नहीं कर सकता। उन्होंने संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हिंदू धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म को मानने वाला व्यक्ति अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने 2016 1 ALD (Cri) 545 (चिन्नी अप्पा राव बनाम आंध्र प्रदेश राज्य) और AIR Online 2024 SC 793 (सी.सेल्वरानी बनाम विशेष सचिव) जैसे मामलों का उल्लेख किया, जहां यह माना गया कि ईसाई धर्म में परिवर्तित व्यक्ति SC/ST एक्ट के तहत संरक्षण का दावा नहीं कर सकता। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि शिकायतकर्ता ने गांव में धार्मिक और जातिगत भावनाओं को भड़काकर सामाजिक ताने-बाने को खराब किया।

शिकायतकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पुलिस ने 10 गवाहों और मेडिकल ऑफिसर के बयानों के आधार पर चार्जशीट दाखिल की है, जो घटना की पुष्टि करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पित्तलावानीपालेम मंडल के तहसीलदार (गवाह नंबर 12) ने शिकायतकर्ता को हिंदू-मडिगा जाति का होने की पुष्टि की है, जो अनुसूचित जाति में आती है। इसलिए, शिकायतकर्ता को SC/ST एक्ट का संरक्षण प्राप्त है।

वकील ने 2009 LawSuit (SC) 624 (कुरापति मारिया दास बनाम डॉ. अंबेडकर सेवा समजम) और (2016) 11 SCC 617 (मोहम्मद सादिक बनाम दबारा सिंह गुरु) जैसे मामलों का हवाला दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जाति जन्म से जुड़ी होती है और धर्म परिवर्तन से जाति नहीं बदलती। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि शिकायतकर्ता के जाति प्रमाणपत्र की वैधता एक तथ्यात्मक प्रश्न है, जिसे ट्रायल कोर्ट में तय किया जाना चाहिए।

हाईकोर्ट ने क्या कहा ?

हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति हरिनाथ एन ने दोनों पक्षों की दलीलों और रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री की समीक्षा की। कोर्ट ने माना कि SC/ST एक्ट केवल अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए लागू होता है। कोर्ट ने शिकायत और गवाहों के बयानों का विश्लेषण किया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि शिकायतकर्ता पिछले 10 वर्षों से पादरी के रूप में कार्यरत है और पित्तलावानीपालेम मंडल में पादरियों के फेलोशिप का कोषाध्यक्ष है। गवाहों ने भी पुष्टि की कि शिकायतकर्ता ईसाई धर्म का पालन करता है और रविवार की प्रार्थनाएं आयोजित करता है।

कोर्ट ने माना कि ईसाई धर्म में जाति व्यवस्था को मान्यता नहीं दी जाती है। शिकायतकर्ता, जो स्वेच्छा से ईसाई धर्म में परिवर्तित हो चुका है और पादरी के रूप में कार्यरत है, SC/ST एक्ट के तहत संरक्षण का दावा नहीं कर सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता का जाति प्रमाणपत्र, जो रद्द नहीं हुआ है, उसे SC/ST एक्ट का संरक्षण प्रदान नहीं करता, क्योंकि वह ईसाई धर्म में परिवर्तित होने के बाद अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं रहा।

IPC की धारा 341, 506, और 323 के तहत आरोपों के संबंध में, कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता और गवाह नंबर 3 के बयानों को छोड़कर, कोई अन्य गवाह 30 लोगों की उपस्थिति या हमले की पुष्टि नहीं करता। गवाह नंबर 9, जो शिकायतकर्ता के साथ थी, ने भी केवल यह कहा कि कुछ लोग शिकायतकर्ता से बात करना चाहते थे और बाद में उसे धमकी दी गई। कोर्ट ने माना कि इन आरोपों को पूर्ण ट्रायल के बाद भी सिद्ध नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि SC/ST एक्ट के तहत दर्ज मामला गैरकानूनी है और शिकायतकर्ता ने एक झूठी शिकायत दर्ज की। कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता को ट्रायल कोर्ट में भेजने और मुकदमे की प्रक्रिया से गुजरने का कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। इसलिए, क्रिमिनल पिटीशन को स्वीकार करते हुए, Spl.SC.No.36 of 2021 को रद्द कर दिया गया।