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"महारों का घमंड तोड़ो..!" बीड में दो दलित परिवारों पर जातिवादी हिंसा—लोहे की रॉड से पीटा, गहने लूटे, महिला के साथ अभद्रता

शिरापूर गट  – बीड जिले के शिरूर कासार तहसील के शिरापूर गट गांव में जातिगत हिंसा की एक भयावह घटना सामने आई है। दलित समुदाय के युवक वैभव खांडगाले (32) और उनके परिवार पर ऊंची जाति के लोगों ने सामूहिक हमला किया। वैभव पर यह हमला सिर्फ इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने एक दलित किशोर की मदद की थी। घटना ने गांव में गहरे पैठे जातिगत भेदभाव को उजागर किया है।

4 जून की शाम करीब 6 बजे वैभव खांडगाले अपने दफ्तर से घर लौटे। उन्होंने देखा कि गांव का एक दलित किशोर जहर खा चुका है और कोई उसकी मदद नहीं कर रहा। वैभव ने तुरंत उसे अस्पताल पहुंचाया। शाम 7:30 बजे जब वे घर लौटकर बाहर बैठे थे, तभी 10-12 ऊंची जाति (मराठा) के लोगों ने कार से आकर उन पर अचानक हमला कर दिया। इनमें वैभव के कुछ पुराने सहपाठी भी शामिल थे।

चश्मदीदों के मुताबिक, हमलावरों ने जातिसूचक गालियां देते हुए कहा, "खूप जास्त पैशाचा माज आहे का तुला? महाराचे लोकं लय माजलेत..." ("क्या तुझे पैसे ने मस्ती चढ़ गई है? ये महार (दलित) लोग बहुत घमंडी हो गए हैं...")। उन्होंने लोहे की रॉड से वैभव की पिटाई की, उनका बटुआ (₹8,000) लूट लिया और घर के अंदर से उनकी मां के सोने के गहने भी चुरा लिए। भीड़ ने उन्हें सड़क पर घसीटा और लगातार पीटा, जबकि 200 से ज्यादा ग्रामीण सिर्फ देखते रहे, किसी ने हस्तक्षेप नहीं किया।

जब वैभव के माता-पिता वापस आए, तो उनकी मां ने उन्हें बचाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी जातिसूचक गालियां दी गईं और हल्की चोटें आईं। इसी दौरान, उस दलित युवक की मां, जिसे वैभव ने अस्पताल पहुंचाया था, पर भी 6-7 लोगों ने हमला किया। उसके बच्चों को पीटा गया और जान की धमकी दी गई। पूरे दलित समुदाय को गालियां देकर सामाजिक बहिष्कार की धमकी दी गई।

मुख्य आरोपी की पत्नी ने उलटा वैभव पर ही धमकाने और चोरी का एक झूठा प्रतिकर केस दर्ज कराया।

द मूकनायक से बात करते हुए वैभव के भाई धनंजय ने बताया , " जब परिवार वैभव को अस्पताल ले जाने की कोशिश कर रहा था, तो ग्रामीणों ने रास्ता रोक दिया। मैंने रात 8:17 बजे पुलिस हेल्पलाइन को फोन किया, लेकिन मदद देर से पहुंची। वैभव को आधी रात तक बीड सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया। गाँव में दलित समुदाय के 4-5 ही मकान है जबकि अधिकांश घर मराठा के हैं जिसकी वजह से उनका वर्चस्व है और दलित परिवार अन्याय होने पर बोलने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं।

हमले की गंभीरता के बावजूद, अस्पताल प्रशासन ने मेडिको-लीगल केस (MLC) दर्ज नहीं किया। पुलिस अधीक्षक (SP) का कार्यालय पास में होने के बावजूद कोई पूछताछ नहीं की गई। जब पुलिस आई भी, तो उनके अधिकारियों ने पीड़ित से असंवेदनशील तरीके से बात की। वैभव के चेहरे पर सूजन थी और वे ट्रौमा के कारण बोल भी नहीं पा रहे थे लेकिन अगले दिन अस्पताल ने बिना जांच किए वैभव को डिस्चार्ज कर दिया—जिससे लगता है कि वे FIR से बचना चाहते थे।"

परिवार को अगले दिन शिरूर कासार पुलिस स्टेशन बुलाया गया, लेकिन PSI और PI के आने तक उन्हें शाम 5 बजे तक इंतजार कराया गया। पुलिस ने शुरू में FIR दर्ज करने से ही मना कर दिया, लेकिन दबाव के बाद रात 8 बजे FIR लिखी गई। इस बीच, आरोपियों के परिवारों ने दलित नेताओं के साथ मिलकर शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया—यह सब पुलिस की मौजूदगी में हुआ।

इसके जवाब में मुख्य आरोपी की पत्नी ने रात 11 बजे एक झूठा प्रतिकर केस दर्ज कराया। उसने दावा किया कि उसी दिन शाम 8 बजे वैभव, उनके पिता और एक अन्य दलित युवक ने उसे धमकाया और उसके घर से ₹50,000 चुराए। परिवार का कहना है कि यह SC/ST एक्ट के तहत केस को कमजोर करने की साजिश है।

धनंजय ने बताया कि जिस किशोर को वैभव ने अस्पताल पहुंचाया था, उसकी 42 वर्षीय मां पर भी उसी दिन लोहे की रॉड से हमला किया गया। उसके साथ अभद्रता की गई, प्राइवेट पार्ट्स पर हमला किया और लेकिन पुलिस ने उसे शिकायत दर्ज कराने से रोका। पुलिस ने उसे बार-बार घर भेजा और FIR नहीं लिखी। ग्रामीण और पुलिस उस पर दबाव बना रहे हैं।

खांडगाले परिवार ने पुलिस पर आरोप लगाया है कि वह ऊंची जाति के आरोपियों के पक्ष में है। वे SC/ST (अत्याचार निवारण) एक्ट, 1989 के तहत त्वरित कार्रवाई और निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं।

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