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TM Investigation: हिंदू–मुस्लिम बहस और DNA का धर्म से संबंध की असलियत क्या कहती है?

भोपाल। हाल ही में बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के एक बयान ने देश में पुरानी बहस को फिर हवा दे दी। शास्त्री ने कहा कि “असली मुस्लिम विदेशों में हैं, यहां सभी मुसलमान कन्वर्टेड हैं। अगर पूर्वजों की खोज की जाए तो सब सनातनी ही मिलेंगे।” उनके इस बयान ने मुस्लिम समाज को आहत किया और तीखा पलटवार सामने आया।

ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने पलटवार किया, “दुनिया में सबसे पहले हज़रत आदम आए और सारी इंसानियत उन्हीं की औलाद है। धीरेंद्र शास्त्री भी आदम की ही औलाद हैं। असली-नकली का फर्क करने वाला खुद नकली होता है।”

यह विवाद अचानक भले ही बड़ा दिख रहा हो, लेकिन सवाल नया नहीं है। धर्म, जाति और पहचान के मुद्दे पर भारत में समय-समय पर बहस उठती रही है। वैज्ञानिक तथ्यों की रोशनी में देखें तो असली सवाल यह है कि क्या धर्म बदलने से डीएनए बदलता है?

साल 2021 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा था कि “सभी भारतीयों का डीएनए एक है, चाहे वे किसी भी धर्म के हों। हिंदू-मुस्लिम एकता भ्रामक है क्योंकि वे अलग-अलग नहीं बल्कि एक ही हैं।”

भागवत का बयान वैज्ञानिक दृष्टि से तर्कसंगत माना गया, लेकिन इसे भी सांप्रदायिक राजनीति से जोड़कर देखा गया। अब जब धीरेंद्र शास्त्री का बयान आया है, तो बहस दोबारा तेज हो गई है।

द मूकनायक की पड़ताल: डीएनए रिपोर्ट्स क्या कहती हैं?

डीएनए विज्ञान हमें यह बताता है कि किसी व्यक्ति या समुदाय के पूर्वज कहाँ से आए और उनकी आनुवंशिक संरचना में किस-किस मानव समूह का योगदान रहा। धर्म, पूजा-पद्धति या विश्वास से इसका कोई सीधा संबंध नहीं होता।

मैंगलोर विश्वविद्यालय के एप्लाइड जूलॉजी विभाग की एक ताज़ा स्टडी बताती है कि गोत्र प्रणाली की जड़ें हजारों साल पुरानी हैं। गोत्र की परंपरा को प्राचीन सप्तर्षियों से जोड़ा गया और विवाह में इसका पालन आनुवंशिक विविधता बनाए रखने के लिए किया गया।

ब्राह्मण DNA की पड़ताल

मैंगलोर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने 334 भारतीय ब्राह्मण पुरुषों का डीएनए अध्ययन किया और उसकी तुलना 1,300 से अधिक यूरेशियाई पुरुषों से की।

शोध में सामने आया कि ब्राह्मणों की साझा आनुवंशिक जड़ें R1a Y-DNA पितृवंश से जुड़ी हैं, जिनका संबंध पश्चिमी ईरान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान से पाया गया।

मुख्य शोधकर्ता जेसन सीक्वेरा का कहना है, “भारतीय ब्राह्मणों का साझा पूर्वज यूरो-एशियाई क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है। यह बताता है कि भारत में अलग-अलग समुदायों की जड़ें केवल यहीं की नहीं बल्कि बाहर से आए प्रवासियों से भी जुड़ी हुई हैं।”

हाल की वैज्ञानिक स्टडीज़

UC Berkeley और AIIMS की रिपोर्ट (जून 2025): इस संयुक्त रिपोर्ट ने बताया कि भारत में रहने वाले लोगों का डीएनए अफ्रीका से आए पहले मानवों तक जुड़ता है। इसका मतलब है कि इंसान की उत्पत्ति अफ्रीका से हुई और समय के साथ वे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैले।

मैंगलोर यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट (अगस्त 2025): अध्ययन में पाया गया कि भारत के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले ब्राह्मणों के डीएनए में भी साझा पितृवंश मौजूद है, जिसे R1a Y-DNA कहा जाता है।

धार्मिक पहचान और पूर्वजों का सच

इतिहासकार और समाजशास्त्री मानते हैं कि धर्म परिवर्तन भारतीय समाज की ऐतिहासिक प्रक्रिया रही है। प्राचीन काल में बौद्ध धर्म और जैन धर्म का प्रभाव इतना व्यापक हुआ कि बड़ी संख्या में लोगों ने इन्हें अपनाया। बाद में इस्लाम और ईसाई धर्म का प्रसार हुआ और लाखों लोगों ने इन्हें स्वीकार किया।

इससे यह स्पष्ट होता है कि आज का कोई भी मुसलमान, हिंदू, सिख या ईसाई, सबके पूर्वज इसी उपमहाद्वीप की मिट्टी से जुड़े रहे हैं। धर्म परिवर्तन से व्यक्ति की धार्मिक पहचान बदल सकती है, लेकिन उसका डीएनए नहीं।

शिक्षाविद, इतिहासकार, डॉ. स्मिता राशी द मूकनायक से बातचीत में कहती हैं, “गोत्र प्रणाली केवल धार्मिक परंपरा नहीं बल्कि सामाजिक और जैविक पहचान की कड़ी भी है। प्राचीन काल में एक ही गोत्र में विवाह से बचने का उद्देश्य आनुवंशिक विविधता बनाए रखना था। आज भी यह परंपरा समाज में किसी न किसी रूप में प्रासंगिक है।”

आधुनिक विज्ञान पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “राखीगढ़ी से मिले डीएनए अध्ययन (2019) में यह सामने आया कि भारत की प्राचीन आबादी में ईरानी किसानों और दक्षिण एशियाई शिकारी-संग्राहकों का मिश्रण था। बाद में आए स्टेप प्रवासियों से जुड़ा डीएनए ब्राह्मण और क्षत्रिय समुदायों में अधिक पाया गया। हाल ही में LASI-DAD प्रोजेक्ट (2024) ने दिखाया कि ब्राह्मण और राजपूत जैसे समुदायों में 20–30% स्टेप ancestry और 50–70% दक्षिण एशियाई ancestry मौजूद है।”

विज्ञान का स्पष्ट मत है कि धर्म बदलने से डीएनए नहीं बदलता।डीएनए हमें जैविक रूप से जोड़ता है, जबकि धर्म हमें सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से अलग-अलग पहचान देता है। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई व्यक्ति हिंदू से मुसलमान या मुसलमान से ईसाई बन जाए, तो उसकी आनुवंशिक संरचना वही रहेगी।

क्या होता है DNA?

डीएनए यानी डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड हमारे शरीर का वह विशेष अणु है जिसमें हर इंसान की जैविक जानकारी दर्ज होती है। इसे “जीवन का खाका” या “ब्लूप्रिंट” कहा जाता है।

डीएनए की मदद से किसी व्यक्ति की वंशावली, आनुवंशिक रोग और पूर्वजों का पता लगाया जा सकता है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि अलग-अलग धर्मों के लोगों का डीएनए आपस में काफी हद तक साझा होता है।

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