MP: बीएन राव को संविधान निर्माता घोषित करने की मांग, बहुजन संगठनों ने जताया विरोध

05:56 PM Jun 17, 2025 | Ankit Pachauri

भोपाल। मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में एक बार फिर संविधान निर्माण को लेकर विवादास्पद मांग उठी है। सवर्ण एकता मंच ने प्रदेश संयोजक दिनेश डंडौतिया के नेतृत्व में राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन तहसीलदार को सौंपा, जिसमें सर बेनीगल नरसिंह राव (बीएन राव) को 'संविधान निर्माता' घोषित करने की मांग की गई। इस मौके पर मंच के कार्यकर्ताओं ने तहसीलदार कार्यालय का घेराव करते हुए जोरदार नारेबाजी भी की। इधर बहुजन संगठनों ने मांग का विरोध करते हुए, भ्रम फैलाने का आरोप लगाया है।

डंडौतिया ने कहा कि सर बीएन राव को कानून का गहरा ज्ञान था और इसी योग्यता के आधार पर 1946 में उन्हें संविधान सभा का संवैधानिक सलाहकार नियुक्त किया गया था। उन्होंने कई देशों की संवैधानिक व्यवस्थाओं का अध्ययन किया और भारतीय संविधान का प्रारंभिक मसौदा तैयार करने में सहयोग दिया।

सवर्ण एकता मंच का दावा है कि वे पहले भारतीय नागरिक थे जो अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीश बने। उन्होंने बिना किसी वेतन और भत्ते के संविधान के प्रारूप निर्माण में भागीदारी निभाई।

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संगठन ने राष्ट्रपति से तीन प्रमुख मांगे की:

  • सर बीएन राव को "संविधान निर्माता" की उपाधि दी जाए।

  • देशभर में सर्वोच्च स्थानों पर उनकी प्रतिमाएं स्थापित की जाएं।

  • उन्हें मरणोपरांत राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया जाए।

ज्ञापन सौंपने के दौरान मनीष शर्मा, प्रमोद शर्मा, कल्ला शर्मा, दिनेश उपाध्याय, रामू शर्मा, आकाश शर्मा सहित कई कार्यकर्ता मौजूद रहे।

दलित संगठनों और विशेषज्ञों का विरोध

इस मांग पर दलित एक्टिविस्ट संगठनों और संविधान विशेषज्ञों ने कड़ी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की कोशिश है और इससे समाज में भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है।

बहुजन चिंतक और अधिवक्ता धर्मेंद्र कुशवाहा ने कहा, "डॉ. भीमराव अंबेडकर को संविधान सभा ने सर्वसम्मति से संविधान निर्माता नियुक्त किया था। वे न केवल प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे, बल्कि उनके नेतृत्व में ही संविधान का अंतिम रूप तैयार हुआ। बीएन राव संविधान के सलाहकार थे, परंतु उन्हें संविधान निर्माता कह देना तथ्यों के साथ धोखा है।"

इधर अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने कहा, "यह मांग राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित लगती है। संविधान निर्माता का दर्जा केवल डॉ. अंबेडकर को है, जिन्हें खुद संविधान सभा, तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू और राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने यह भूमिका सौंपी थी।"

बाबा साहब से डरते है मनुवादी

द मूकनायक से बातचीत करते हुए भीम आर्मी प्रदेश अध्यक्ष सुनील बैरसिया ने कहा, "ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा लगाने का मुद्दा सिर्फ एक मूर्ति लगाने का नहीं है, ये न्याय, सम्मान और पहचान का सवाल है। बाबा साहब इस देश के संविधान निर्माता रहे हैं, देश के पहले कानून मंत्री रहे हैं और उन्होंने हमें सामाजिक न्याय का सिद्धांत दिया। आज कुछ लोग, जो सामाजिक न्याय के खिलाफ हैं, वो बाबा साहब की मूर्ति से डरते हैं। ये डर दिखाता है कि उनके विचार आज भी कितना प्रभावशाली हैं। हम मांग करते हैं कि हाईकोर्ट परिसर में उनकी प्रतिमा तुरंत लगाई जाए। कुछ मनुवादी विचारधारा वाले लोग भ्रम फैला रहे है, लेकिन देश सब जानता है। बाबा साहब संविधान के निर्माता है।"

क्या कहती है संविधान सभा की ऐतिहासिक दस्तावेज़ी प्रक्रिया?

संविधान निर्माण की ऐतिहासिक प्रक्रिया में सर बीएन राव की भूमिका एक सलाहकार के रूप में थी, जो प्रारूप तैयार करने से पहले अन्य देशों की संवैधानिक व्यवस्थाओं का अध्ययन कर मार्गदर्शन प्रदान करते थे। परंतु संविधान का अंतिम प्रारूप, अनुच्छेदों का चयन, भाषा का निर्धारण और उसके राजनीतिक-सामाजिक संदर्भों का समावेश – यह सब कार्य डॉ. अंबेडकर की अध्यक्षता वाली प्रारूप समिति ने किया।

डॉ. अंबेडकर को 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने 7-सदस्यीय प्रारूप समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया था। उन्होंने 2 साल 11 महीने और 18 दिन की मेहनत से संविधान निर्माण की ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी निभाई।

मुरैना में सवर्ण एकता मंच की मांग ने एक बार फिर भारत के संविधान निर्माण से जुड़े इतिहास को लेकर नई बहस छेड़ दी है। जबकि बीएन राव का योगदान निर्विवाद है, संविधान निर्माता के रूप में एकमात्र नाम डॉ. भीमराव अंबेडकर का ही है, जिसे ऐतिहासिक रूप से दर्ज किया गया है। विशेषज्ञों की राय में इस तरह की मांगें समाज में भ्रम और वैचारिक टकराव को जन्म दे सकती हैं।

क्या कहते हैं संविधान और इतिहास?

संविधान सभा ने डॉ. अंबेडकर को संविधान निर्माता के रूप में स्वीकृत किया था। बीएन राव की भूमिका सलाहकार तक सीमित थी, न कि निर्णयकर्ता की।