भोपाल। मध्य प्रदेश के ग्वालियर हाईकोर्ट की बेंच में प्रस्तावित डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा को लेकर विवाद लगातार गहराता जा रहा है। जहां एक ओर वकीलों का एक समूह प्रतिमा स्थापना के समर्थन में है, वहीं हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इस विवाद ने अब तिरंगा फहराने से लेकर महिला पुलिसकर्मियों से झूमाझटकी तक का रूप ले लिया है।
तिरंगा फहराकर जताया विरोध
शनिवार को हाईकोर्ट परिसर में प्रतिमा के लिए प्रस्तावित स्थल पर बार एसोसिएशन के सदस्यों ने तिरंगा फहराया। इस दौरान पुलिस ने रोकने की कोशिश की, जिससे स्थिति तनावपूर्ण हो गई। पुलिस और अधिवक्ताओं के बीच धक्का-मुक्की हुई। रविवार को इसका वीडियो भी सामने आया, जिसमें देखा गया कि कुछ अधिवक्ता महिला पुलिसकर्मियों से झूमाझटकी कर रहे हैं और प्रतिमा स्थल पर स्टील पाइप लगाकर उस पर झंडा फहरा रहे हैं।
बार एसोसिएशन ने कहा: 'ऑपरेशन सिंदूर' की स्मृति में झंडा
बार एसोसिएशन ने स्पष्ट किया कि तिरंगा 'ऑपरेशन सिंदूर' की स्मृति में फहराया गया है। अध्यक्ष पवन पाठक ने कहा कि वे इस तिरंगे को 100 फीट की ऊँचाई पर स्थापित करने की अनुमति के लिए हाईकोर्ट में अपील करेंगे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि प्रतिमा स्थापना की प्रक्रिया में न बार एसोसिएशन को विश्वास में लिया गया, न ही हाईकोर्ट बिल्डिंग कमेटी के सदस्यों को।
बार एसोसिएशन का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही निर्देश दिया है कि चौक-चौराहों या सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी महापुरुष की प्रतिमा न लगाई जाए। इसी आदेश का हवाला देते हुए एसोसिएशन ने प्रस्ताव पास किया कि हाईकोर्ट परिसर में कोई प्रतिमा नहीं लगाई जाएगी। उनका कहना है कि प्रतिमा लगाने की प्रक्रिया बिना अनुमति के शुरू कर दी गई है, और फाउंडेशन स्ट्रक्चर भी खड़ा कर दिया गया है।
इधर, दूसरी ओर वकीलों के एक समूह का कहना है कि डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा लगाई जानी चाहिए। अधिवक्ता धर्मेंद्र कुशवाहा ने 'द मूकनायक' से बातचीत में कहा, “बाबा साहेब केवल दलितों के नहीं, पूरे देश के प्रेरणा स्रोत हैं। उनका योगदान भारतीय संविधान, लोकतंत्र और न्याय प्रणाली में अमूल्य है। उनकी प्रतिमा लगना न्यायपालिका की गरिमा को बढ़ाएगा।”
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब सुप्रीम कोर्ट और जबलपुर हाईकोर्ट में अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित की जा सकती है, तो ग्वालियर बेंच में क्यों नहीं? उन्होंने बार एसोसिएशन के विरोध को संविधान और सामाजिक न्याय की भावना के खिलाफ बताया।
सोशल मीडिया पर चर्चा में आया मामला
यह विवाद सोशल मीडिया पर भी चर्चा का विषय बन गया है। 'अनुज बमरोलिया' नामक एक फेसबुक अकाउंट से अपलोड किए गए वीडियो में पुलिस के सामने हुए घटनाक्रम को दिखाया गया है। वीडियो के कैप्शन में लिखा गया, “भाई, ये कोई भारत-पाक बॉर्डर नहीं है, ये ग्वालियर का नया हाईकोर्ट है। सरकार यहां बाबा साहेब की प्रतिमा लगाना चाहती है, लेकिन कुछ वकील जिद पर अड़े हैं कि प्रतिमा नहीं लगने देंगे।”
क्या कहता है कानून?
भारतीय संविधान और न्याय व्यवस्था सार्वजनिक स्थलों पर महापुरुषों की प्रतिमा स्थापना को प्रतिबंधित नहीं करता, बशर्ते वह प्रक्रिया विधिसम्मत हो और प्रशासन से अनुमति प्राप्त हो। सुप्रीम कोर्ट की कुछ टिप्पणियों को गलत संदर्भ में पेश कर विरोध किया जा रहा है, जबकि वास्तविकता यह है कि देश के कई उच्च न्यायालय परिसरों में पहले से ही कई महापुरुषों की प्रतिमाएँ स्थापित हैं।
संविधान की मूल भावना का सम्मान हो
प्रतिमा लगाने के पक्ष में वकीलों का कहना है कि यह डॉ. अंबेडकर जैसे संविधान निर्माता के योगदान को सम्मान देना है। संविधान की मूल भावना समानता, न्याय और स्वतंत्रता को दर्शाती है। यदि किसी व्यक्ति की प्रतिमा इन मूल्यों को दर्शाती है और न्यायपालिका की गरिमा बढ़ाती है, तो उसे समर्थन मिलना चाहिए।
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष पवन पाठक का कहना है कि प्रतिमा स्थापना के पक्ष में प्रस्ताव बिना उन्हें विश्वास में लिए पारित किया गया। उन्होंने कहा कि प्रतिमा के लिए बनाई गई समिति या बिल्डिंग कमेटी के सदस्यों को भी जानकारी नहीं दी गई। ऐसे में यह प्रक्रिया असंवैधानिक और अपारदर्शी मानी जानी चाहिए।
महापुरुषों की प्रतिमा स्थापना – कानूनी स्थिति
कोई स्पष्ट निषेध नहीं: भारत के किसी कानून में सार्वजनिक स्थानों पर महापुरुषों की प्रतिमा लगाने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ: सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में सड़क सुरक्षा के संदर्भ में यह कहा था कि सार्वजनिक सड़कों पर प्रतिमाएँ बाधा बन सकती हैं। लेकिन यह टिप्पणी न्यायालय परिसरों पर लागू नहीं होती।
स्थानीय प्रशासन की अनुमति: किसी भी प्रतिमा स्थापना के लिए संबंधित प्रशासनिक इकाई (जैसे हाईकोर्ट प्रशासन, नगर निगम आदि) से अनुमति अनिवार्य होती है।