जयपुर- राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने भारत-पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए सीजफायर पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दखल को लेकर गहरी चिंता जताई है। गहलोत ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में भारत की ऐतिहासिक स्वतंत्र नीति का हवाला देते हुए कहा कि भारत ने हमेशा अंतरराष्ट्रीय दबावों को नजरअंदाज कर अपने हितों को प्राथमिकता दी है। उन्होंने गोवा और सिक्किम के विलय की घटनाओं का जिक्र करते हुए मौजूदा स्थिति पर सवाल उठाए।
गहलोत ने अपने पोस्ट में लिखा, “ वर्तमान परिस्थितियों में भारत के ऊपर बनाए गए अंतरराष्ट्रीय दबाव को देखकर मेरे बचपन के दो वाकये याद आते हैं जिसमें भारत ने सभी अंतरराष्ट्रीय दबावों को पीछे छोड़ कर कार्रवाई की थी। पूर्व में भारत कभी अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे नहीं झुका इसलिए ही हम देशवासियों के गले यह बात नहीं उतर रही है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने सीजफायर का ऐलान कैसे कर दिया। यह तो पूरी तरह हमारी सरकार का निर्णय होना चाहिए था।
1961 में पंडित नेहरू ने गोवा को पुर्तगाल के कब्जे से मुक्त कराया, भले ही पुर्तगाल नाटो का सदस्य था और पश्चिमी देशों का दबाव था। 1974 में इंदिरा गांधी ने अमेरिकी चेतावनियों को अनदेखा कर सिक्किम को भारत का हिस्सा बनाया।” उन्होंने आगे कहा, “इंदिरा जी के समय से भारत की नीति रही है कि भारत-पाक मामलों में तीसरे पक्ष का दखल नहीं होगा। फिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि केंद्र सरकार ने अमेरिका को दखल देने दिया?”
10 मई को डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर दावा किया कि अमेरिकी मध्यस्थता के बाद भारत और पाकिस्तान ने तत्काल सीजफायर पर सहमति जताई। ट्रंप ने इसे “ऐतिहासिक और मानवीय” कदम बताते हुए दोनों देशों के नेतृत्व की सराहना की। हालांकि, भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने स्पष्ट किया कि यह सीजफायर द्विपक्षीय था और दोनों देशों के डीजीएमओ स्तर पर बातचीत के बाद लागू हुआ। भारत ने अमेरिकी मध्यस्थता के दावे को खारिज करते हुए कहा कि यह पूरी तरह से भारत-पाकिस्तान का आपसी निर्णय था।
सीजफायर लागू होने के महज तीन घंटे बाद ही पाकिस्तान ने कश्मीर में गोलीबारी और ड्रोन हमले शुरू कर दिए। विदेश सचिव मिसरी ने आधी रात को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पाकिस्तान के इस उल्लंघन की निंदा की। भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई की, जिसके बाद पाकिस्तान के तेवर ढीले पड़े। गहलोत ने इस घटना को पाकिस्तान की “दगाबाजी” करार देते हुए कहा कि यह उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।
गहलोत ने अपने पोस्ट में 1961 के ऑपरेशन विजय का जिक्र किया, जब भारत ने पुर्तगाली शासन से गोवा को मुक्त कराया। उस समय अमेरिका और नाटो देशों ने भारत पर दबाव बनाया था, लेकिन पंडित नेहरू ने सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया। इसी तरह, 1974 में सिक्किम के भारत में विलय के दौरान इंदिरा गांधी ने अमेरिकी दबाव को नजरअंदाज किया। गहलोत ने इन घटनाओं को याद करते हुए कहा कि भारत ने हमेशा अपनी संप्रभुता को प्राथमिकता दी।
गहलोत के पोस्ट ने देश में एक नई बहस छेड़ दी है। कई विशेषज्ञों और नेताओं ने अमेरिकी दखल पर सवाल उठाए हैं। ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) अशीष दत्ता ने ट्रंप के दावे को “अस्वीकार्य” बताया और कहा कि अमेरिका का भारत-पाक मामलों में कोई आधार नहीं है।
रक्षा मामलों के विशेषज्ञ प्रफुल बख्शी का कहना है कि यह सीजफायर स्थायी नहीं है, बल्कि एक ‘अस्थायी शांति’ की स्थिति है। उनके मुताबिक दोनों देशों के डीजीएमओ मिलकर आगे की रणनीति तय करेंगे। उन्होंने यह भी इशारा किया कि चीन भी इस पूरे घटनाक्रम में पर्दे के पीछे सक्रिय भूमिका निभा रहा है। बख्शी के मुताबिक, “चीन अब जान गया है कि पाकिस्तान को किस तरह इस्तेमाल किया जा सकता है और पाकिस्तान भी उसी के इशारे पर काम कर रहा है।”