नाबालिग से कहा 'आई लव यू', 3 साल की सजा… लेकिन हाईकोर्ट ने पलट दिया पूरा केस!

09:58 AM Jul 02, 2025 | Rajan Chaudhary

नागपुर: बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में एक व्यक्ति को नाबालिग लड़की से छेड़छाड़ के आरोप में दी गई सजा को पलटते हुए कहा कि केवल “आई लव यू” कहना अपने आप में यौन इरादे को साबित नहीं करता।

आरोपी को पहले भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354A(i) और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 की धारा 8 के तहत दोषी ठहराया गया था। यह मामला 23 अक्टूबर 2015 को दर्ज कराई गई शिकायत पर आधारित था, जिसमें 17 वर्षीय नाबालिग ने आरोप लगाया था कि आरोपी मोटरसाइकिल से उसके पास आया, उसका हाथ पकड़ा और कहा “आई लव यू”, उस समय वह अपने चचेरे भाई के साथ घर लौट रही थी।

शिकायत के आधार पर आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज हुआ और ट्रायल कोर्ट ने उसे तीन साल के कठोर कारावास और 5,000 रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई थी। जुर्माना न देने पर दो महीने की अतिरिक्त सजा भी तय की गई थी।

अपील के दौरान आरोपी की ओर से अधिवक्ता सोनाली खोब्रागड़े ने दलील दी कि दोनों परिवारों के बीच पहले से दुश्मनी थी और अभियोजन पक्ष कोई स्वतंत्र गवाह पेश नहीं कर सका। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि पीड़िता की उम्र साबित नहीं हो पाई है।

वहीं अभियोजन पक्ष ने पीड़िता के बयान, उसके साथ मौजूद चचेरे भाई और एक अन्य गवाह के बयान तथा उसकी जन्म प्रमाण पत्र पर भरोसा किया। हाईकोर्ट ने जन्म प्रमाण पत्र को वैध दस्तावेज मानते हुए यह स्पष्ट किया कि पीड़िता घटना के समय नाबालिग थी।

हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि घटना के विवरण से “यौन हमले” की परिभाषा (POCSO अधिनियम की धारा 7) पूरी नहीं होती। अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी भी कार्रवाई को यौन हमले के रूप में परिभाषित करने के लिए उसमें यौन इरादा होना चाहिए और यह इरादा घटना के सभी परिस्थितिजन्य पहलुओं से साबित होना चाहिए।

अदालत ने कहा, “सिर्फ ‘आई लव यू’ कहना, बिना किसी अनुचित स्पर्श, बार-बार ऐसी हरकत, या यौन संकेतक हावभाव के, कानून द्वारा परिभाषित यौन इरादे को साबित नहीं करता।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि “इरादा” व्यक्ति की भीतरी मानसिक स्थिति है, जिसे घटनाक्रम और परिस्थितियों के आधार पर समझना पड़ता है। इस मामले में न तो किसी निजी अंग को छूने का आरोप था, न ही किसी तरह का अश्लील संकेत या घटना को आगे बढ़ाने की कोशिश।

अदालत ने ट्रायल कोर्ट की इस बात के लिए भी आलोचना की कि उसने “यौन इरादा” की कानूनी परिभाषा को सावधानीपूर्वक नहीं परखा।

इन तर्कों के आधार पर हाईकोर्ट ने आरोपी की अपील स्वीकार करते हुए उसे सभी आरोपों से बरी कर दिया और तुरंत रिहा करने का आदेश दिया, बशर्ते वह किसी अन्य मामले में वांछित न हो। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि यदि आरोपी ने जुर्माना जमा कर दिया हो तो उसे वापस किया जाए।