धारवाड़/कर्नाटक- जहां एक ओर पंजाब के अमृतसर शहर में गणतंत्र दिवस पर डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा तोड़े जाने की घटना ने पूरे देश को आहत किया, वहीं कर्नाटक के धारवाड़ में उनकी विरासत को सम्मान और पहचान मिलने जा रही है। बेलगावी रोड पर पुराने एसपी सर्किल के पास स्थित ऐतिहासिक छात्रावास और भव्य बुद्ध विहार के पुनर्निर्माण का उद्घाटन इस वर्ष 14 अप्रैल को बाबा साहब अंबेडकर जयंती के अवसर पर किया जाएगा।
कम ही लोग शायद धारवाड़ से बाबा साहब और रमा ताई के जुड़ाव के बारे में जानते हैं. धारवाड़ की भूमि बाबा साहब और रमाताई के ऐतिहासिक और भावनात्मक जुड़ाव की गवाह है।
1920 के दशक में डॉक्टरों की सलाह पर मौसम परिवर्तन के लिए यहां आए बाबा साहब ने समाज के वंचित वर्गों के छात्रों के लिए एक छात्रावास की स्थापना की। तत्कालीन जिला कलेक्टर ने उन्हें दो एकड़ भूमि प्रदान की, और इस भूमि पर बना छात्रावास न केवल शिक्षा के क्षेत्र में एक नई शुरुआत का प्रतीक बना, बल्कि यह सामाजिक न्याय की लड़ाई का भी एक मजबूत आधार बना।
जिस स्थान पर बाबासाहेब ने छात्रावास की स्थापना की थी और जहां उनकी पत्नी रमाबाई ने कुछ समय तक रहकर छात्रों के लिए भोजन बनाया था, वह धीरे-धीरे विस्मृति के गर्त में चला गया था। लेकिन डॉ. बी.आर. अम्बेडकर शैक्षिक और चैरिटेबल ट्रस्ट ( BR Ambedkar Educational and Charitable Trust) के नए ट्रस्टियों ने इसे पुनर्जीवित करने की पहल की। जर्जर स्थिति में पहुंच चुके इस छात्रावास का ट्रस्ट द्वारा नवीनीकरण किया गया और इसका नाम बदलकर मातोश्री रमाताई अम्बेडकर कॉलेज बॉयज हॉस्टल रखा गया।
वर्तमान में अम्बेडकर के पौत्र प्रकाश अम्बेडकर ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। ट्रस्ट के सचिव एफ.एच. जक्कप्पनावर ने 'द हिंदू' को जानकारी दी कि छात्रावास भूमि की ओरिजिनल डीड में अंबेडकर का नाम पर दर्ज है और यह बाबा साहब की दूरदृष्टि का प्रमाण है।
इस छात्रावास परिसर में समय के साथ शैक्षिक गतिविधियां और भी विस्तारित हुईं। पूर्व मंत्री बी. बसवलिंगप्पा द्वारा 1969 में स्थापित बुद्धरक्षित आवासीय विद्यालय के अलावा वतर्मान में यहाँ अशोक सम्राट कला एवं वाणिज्य पीयू कॉलेज तथा मिलिंद अंग्रेजी माध्यम प्राथमिक विद्यालय भी संचालित हैं।
धारवाड़ से बाबा साहब का जुड़ाव
धारवाड़ से बाबा साहब का जुड़ाव और भी गहरा है। जब उन्हें पता चला कि 1856 में धारवाड़ के एक महार व्यक्ति ने अपने बच्चे की शिक्षा के अधिकार के लिए बंबई सरकार से लड़ाई लड़ी थी, उन्होंने पहली बार इस क्षेत्र का दौरा किया, इस घटना से प्रेरित होकर बाबा साहब ने शिक्षा को वंचित वर्ग के उत्थान का मुख्य आधार माना।
उस समय एक महार समुदाय के व्यक्ति ने अपने बेटे के लिए शिक्षा का अधिकार मांगा और बॉम्बे नेटिव एजुकेशन सोसाइटी में प्रवेश की मांग की। ब्रिटिश सरकार ने इस पर शिक्षा के द्वार सभी जातियों के लिए खोल दिए। इस घटना ने बाबा साहब को गहराई से प्रभावित किया और उन्होंने "धारवाड़ के महार" की जानकारी के लिए इस क्षेत्र का दौरा किया। उसके बाद वे अपनी पत्नी के साथ यहाँ दुबारा आये और छात्रावास की स्थापना की थी.
बाबा साहब ने धारवाड़ में "माचिगर सहकारी क्रेडिट सोसाइटी" की स्थापना भी की, जो वंचित समुदाय के लिए वित्तीय सहयोग का एक महत्वपूर्ण साधन बनी।
बाबा साहब के साथ रमाताई अंबेडकर के त्याग और समर्पण की कहानियां धारवाड़ की हर गली में जीवित हैं। 1930 के दशक में, जब बाबा साहब लंदन में राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में व्यस्त थे, रमाताई ने धारवाड़ आकर छात्रावास का दौरा किया। उन्होंने देखा कि छात्रावास की स्थिति अत्यंत खराब थी। छात्रों को भोजन तक सही से नहीं मिल पा रहा था। रमाताई ने अपने गहने बेचकर अनाज खरीदा और खुद अपने हाथों से भोजन पकाकर छात्रों की देखभाल की।
रमाताई का यह त्याग केवल एक महिला का समर्पण नहीं, बल्कि बाबा साहब के सपनों को साकार करने का एक ऐतिहासिक प्रयास था। 1935 में उनके निधन तक, रमाताई ने अपने जीवन को वंचित समाज की सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर शैक्षिक और चैरिटेबल ट्रस्ट ने यहाँ बाबा साहब की विरासत के पुनरोद्धार की पहल की, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के पहले कार्यकाल के दौरान मेमोरियल के निर्माण का प्रस्ताव पहली बार रखा गया था। इसके बाद कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार, भाजपा सरकार और पिछले साल वर्तमान कांग्रेस सरकार द्वारा भी इस परियोजना के लिए धन जारी किया गया।
परियोजना 2019 में शुरू हुई थी, लेकिन कोविड महामारी के कारण इसके काम में देरी हुई। अब इसके निर्माण कार्य पूरे हो चुके हैं। मेमोरियल के साथ ही छात्रावास का नवीनीकरण भी किया गया है।