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MP हाईकोर्ट में ‘जमानत अदला-बदली’ का अनोखा मामला, टाइपिंग गलती से हत्या के आरोपी को मिली राहत, लेकिन रिहाई टल गई

भोपाल। दुकान से सामान की अदला-बदली की खबरें अक्सर सुनी जाती हैं, लेकिन मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच में पहली बार ‘जमानत अदला-बदली’ जैसा मामला सामने आया है। यह मामला हत्या के एक संवेदनशील मुकदमे से जुड़ा है, जिसमें महज टाइपिंग त्रुटि के कारण हत्या के एक आरोपी को जमानत मिल गई, जबकि उसे जमानत नहीं मिलनी थी।

पूरा घटनाक्रम 8 अगस्त को शुरू हुआ। सुबह करीब पौने 11 बजे हाईकोर्ट की वेबसाइट पर आदेश अपलोड हुआ, जिसमें विदिशा जिले के त्योंदा थाना क्षेत्र के हत्या मामले के आरोपी हलके आदिवासी को जमानत दे दी गई, जबकि उसी मामले के आरोपी अशोक की जमानत याचिका खारिज कर दी गई। आदेश अपलोड होते ही हलके के वकील ने तुरंत जमानत भरवा दी और रिहाई का आदेश जेल तक पहुंच गया।

लेकिन शाम करीब साढ़े 6 बजे एक नया आदेश जारी हुआ, जिसने पूरे मामले का रुख बदल दिया। इसमें बताया गया कि टाइपिंग की गलती के कारण आदेश उलटा जारी हो गया था, जिस आरोपी की जमानत खारिज होनी थी, उसे जमानत दे दी गई और जिसे जमानत मिलनी थी, उसकी याचिका खारिज कर दी गई।

क्या था मामला?

विदिशा जिले के त्योंदा थाना क्षेत्र में 5 जुलाई 2024 की शाम प्रकाश पाल अपनी दुकान पर बैठा था, तभी हलके आदिवासी और धर्मेंद्र आदिवासी वहां पहुंचे और कथित तौर पर डंडे और पत्थर से उसकी हत्या कर दी। पुलिस ने जांच के बाद हलके को 8 जुलाई और अशोक को 10 जुलाई को गिरफ्तार किया। दोनों ने अलग-अलग जमानत याचिकाएं दायर कीं, जिन पर 7 अगस्त को सुनवाई हुई।

वकील को फोन पर दी गई चेतावनी

हलके के एडवोकेट अमीन खान के मुताबिक, दोपहर करीब 3 बजे उन्हें फोन पर सूचना मिली कि उनके क्लाइंट के आदेश में टाइपिंग त्रुटि हुई है, इसलिए जमानत न भरवाएं। हालांकि, आदेश पहले ही भर दिया गया था और रिहाई की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। हाईकोर्ट की तत्परता से रिहाई समय रहते रोक दी गई और दोनों आदेश वापस ले लिए गए। मामले में अब सोमवार को दोबारा सुनवाई होगी, जिसमें सही आदेश जारी किया जाएगा।

न्यायिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के मामलों में आदेश जारी करने से पहले दोहरी जांच प्रणाली (डबल वेरिफिकेशन) लागू करना बेहद जरूरी है, ताकि कोई भी गंभीर गलती न हो। उनका कहना है कि खासकर हत्या जैसे संवेदनशील मामलों में अगर आदेश में ज़रा सी भी गलती रह जाए तो उसका असर सीधे मुकदमे की दिशा पर पड़ सकता है। आदेश अपलोड होने से पहले उसकी बारीकी से जांच होनी चाहिए, ताकि न्यायपालिका की पारदर्शिता और भरोसा कायम रहे।

द मूकनायक से बातचीत में विधि विशेषज्ञ मयंक सिंह ने कहा कि यह मामला बताता है कि अदालतों को तकनीकी और मानवीय दोनों स्तरों पर ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। उन्होंने समझाया, “सोचिए, अगर यह गलती समय रहते पकड़ में न आती तो हत्या का आरोपी जेल से बाहर आ जाता और पीड़ित पक्ष को बड़ा आघात लगता। एक छोटी सी टाइपिंग गलती न केवल मुकदमे का रुख बदल देती है, बल्कि लोगों के मन में न्याय की धारणा पर भी असर डालती है। इसलिए कोर्ट प्रशासन को आदेश जारी करने से पहले उसकी सही-सही जांच करने की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति दोबारा न बने।”

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