Ambedkar Jayanti 2025: हिंदू महिलाओं का पतन— जब बाबासाहेब ने मनुस्मृति और जाति को ठहराया था जिम्मेदार

09:58 AM Apr 13, 2025 | Geetha Sunil Pillai

14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती है। डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर, जिन्हें प्यार से बाबासाहब के नाम से जाना जाता है, ने अपने लेखन और भाषणों के माध्यम से सामाजिक असमानता, विशेष रूप से महिलाओं की स्थिति, पर गहन चिंतन किया। उनका निबंध The Rise and Fall of Hindu Women (हिंदू महिलाओं का उत्थान और पतन) हिंदू समाज में महिलाओं की बदलती स्थिति का एक ऐतिहासिक और समाजशास्त्रीय विश्लेषण प्रस्तुत करता है।

इस निबंध में, बाबासाहब ने प्राचीन काल में हिंदू महिलाओं की उच्च स्थिति, उनके पतन के कारणों और इसके लिए जिम्मेदार सामाजिक-धार्मिक प्रथाओं, विशेष रूप से मनुस्मृति, पर प्रकाश डाला। यह रिपोर्ट उनके इस निबंध से लिए गए उद्धरणों और विचारों पर आधारित है, जो हिंदू महिलाओं की स्थिति को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

प्राचीन काल में हिंदू महिलाओं की स्थिति: उत्थान

बाबासाहब ने अपने निबंध में तर्क दिया कि वैदिक काल में हिंदू महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत सम्मानजनक थी। उन्होंने लिखा, "प्राचीन भारत में महिलाएँ पुरुषों के साथ शिक्षा और सामाजिक जीवन में बराबर की भागीदार थीं। वे उपनयन संस्कार में भाग लेती थीं और वेदों का अध्ययन करती थीं।"


(In ancient India, women were equal participants with men in education and social life. They underwent the Upanayana ceremony and studied the Vedas.)

  • शिक्षा का अधिकार: बाबासाहब ने उल्लेख किया कि वैदिक काल में महिलाएँ ब्रह्मचर्य आश्रम का हिस्सा थीं और गार्गी, मैत्रेयी जैसी विदुषी महिलाएँ दर्शनशास्त्र में पुरुषों के साथ शास्त्रार्थ करती थीं। उन्होंने कहा, "महिलाएँ न केवल शिक्षित थीं, बल्कि वे बौद्धिक चर्चाओं में भी सक्रिय थीं।"

  • विवाह में स्वतंत्रता: उस काल में विवाह की आयु पर कोई कठोर प्रतिबंध नहीं था, और महिलाओं को अपने जीवनसाथी चुनने की कुछ हद तक आजादी थी। बाबासाहेब ने इसे एक प्रगतिशील प्रथा माना।

  • सामाजिक सम्मान: महिलाएँ यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेती थीं, जो उनकी सामाजिक बराबरी को दर्शाता था।

बाबासाहब का मानना था कि यह वह दौर था जब हिंदू समाज में महिलाएँ अपनी बौद्धिक और सामाजिक क्षमता के आधार पर पुरुषों के समकक्ष थीं। उन्होंने इस काल को हिंदू महिलाओं के "उत्थान" का काल कहा।

हिंदू महिलाओं का पतन: कारण और प्रक्रिया

बाबासाहब ने अपने निबंध में हिंदू महिलाओं की स्थिति में आए पतन के लिए कई सामाजिक और धार्मिक कारकों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने इस पतन को एक क्रमिक प्रक्रिया के रूप में देखा, जो विशेष रूप से मनुस्मृति और जाति व्यवस्था के प्रभाव के बाद तेज हुई। उनके प्रमुख तर्क निम्नलिखित हैं:

(i) मनुस्मृति का प्रभाव

बाबासाहब ने मनुस्मृति को हिंदू महिलाओं के पतन का सबसे बड़ा कारण माना। उन्होंने लिखा, "मनुस्मृति ने महिलाओं को पुरुषों का गुलाम बनाया और उन्हें स्वतंत्रता से वंचित किया।"


(The Manusmriti made women the slaves of men and deprived them of freedom.)

  • महिलाओं की अधीनता: मनुस्मृति में कहा गया है कि "महिलाएँ कभी स्वतंत्र नहीं हो सकतीं; वे बचपन में पिता, युवावस्था में पति और वृद्धावस्था में पुत्र के अधीन रहें।" बाबासाहेब ने इस विचार की कठोर आलोचना की और इसे महिलाओं की गरिमा के खिलाफ माना।

  • शिक्षा पर प्रतिबंध: मनुस्मृति ने महिलाओं के लिए उपनयन संस्कार और वेदों के अध्ययन पर रोक लगा दी। बाबासाहेब ने तर्क दिया कि "शिक्षा से वंचित करके महिलाओं को बौद्धिक रूप से कमजोर किया गया, जिससे उनकी सामाजिक स्थिति गिर गई।"

  • विवाह पर नियंत्रण: मनुस्मृति ने बाल विवाह को अनिवार्य किया और महिलाओं की सहमति को अप्रासंगिक बना दिया। बाबासाहेब ने इसे महिलाओं की स्वतंत्रता पर हमला माना।

(ii) जाति व्यवस्था और अंतर्विवाह

बाबासाहब ने अपने निबंध में बताया कि जाति व्यवस्था ने महिलाओं के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने लिखा, "जाति व्यवस्था का आधार अंतर्विवाह (endogamy) है, और अंतर्विवाह ने महिलाओं पर कई कठोर प्रतिबंध लगाए।" उनके अनुसार, अंतर्विवाह ने न केवल जाति व्यवस्था को मजबूत किया, बल्कि महिलाओं की स्वतंत्रता और सामाजिक स्थिति को भी गहरी चोट पहुंचाई।


(The basis of the caste system is endogamy, and endogamy imposed several harsh restrictions on women.)

  • अंतर्विवाह की परिभाषा: अंतर्विवाह का अर्थ है कि किसी व्यक्ति को अपनी जाति या उपजाति के भीतर ही विवाह करना अनिवार्य होता है। यह प्रथा हिंदू समाज में जाति की "पवित्रता" और अलगाव को बनाए रखने के लिए लागू की गई।

  • सती प्रथा और विधवा उत्पीड़न: अंतर्विवाह को बनाए रखने के लिए सती प्रथा और विधवाओं के पुनर्विवाह पर रोक जैसी कुप्रथाएँ शुरू हुईं। बाबासाहेब ने कहा, "सती प्रथा और विधवा उत्पीड़न जाति की पवित्रता को बनाए रखने के लिए लागू किए गए।"

  • बाल विवाह: जाति की सीमाओं को बनाए रखने के लिए बाल विवाह को बढ़ावा दिया गया, जिसने महिलाओं को शिक्षा और स्वतंत्रता से वंचित किया। बाबासाहेब ने इसे "महिलाओं की प्रगति पर सबसे बड़ा आघात" माना।

(iii) बौद्ध धर्म के पतन का प्रभाव

बाबासाहब ने तर्क दिया कि बौद्ध धर्म के प्रभाव में महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ था, क्योंकि बौद्ध धर्म ने समानता और शिक्षा को बढ़ावा दिया। उन्होंने लिखा, "बौद्ध धर्म ने महिलाओं को भिक्षुणी बनने का अवसर दिया और उन्हें सामाजिक सम्मान प्रदान किया।"


(Buddhism gave women the opportunity to become nuns and accorded them social respect.)

हालांकि, बौद्ध धर्म के पतन और ब्राह्मणवादी व्यवस्था के पुनरुत्थान के साथ, महिलाओं की स्थिति फिर से खराब हो गई। मनुस्मृति जैसे ग्रंथों ने बौद्ध धर्म की समानतावादी शिक्षाओं को दबा दिया।

(iv) सामाजिक प्रथाओं का दुरुपयोग

बाबासाहब ने देवदासी प्रथा और बहुविवाह जैसी प्रथाओं की भी आलोचना की। उन्होंने कहा, "ये प्रथाएँ महिलाओं को वस्तु के रूप में देखती थीं, न कि स्वतंत्र व्यक्तियों के रूप में।"
उनका मानना था कि ऐसी प्रथाएँ हिंदू समाज में महिलाओं की गरिमा को नष्ट करती थीं।

बाबासाहब का विश्लेषण: पतन का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण

बाबासाहब ने हिंदू महिलाओं के पतन को केवल धार्मिक या सांस्कृतिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से भी देखा। उन्होंने तर्क दिया कि "महिलाएँ जाति व्यवस्था की द्वारपाल थीं, और उनकी स्वतंत्रता को कुचलना इस व्यवस्था को बनाए रखने का एक तरीका था।"


(Women were the gatekeepers of the caste system, and crushing their freedom was a way to maintain this system.)

  • आर्थिक निर्भरता: शिक्षा और संपत्ति के अधिकार से वंचित होने के कारण महिलाएँ आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर हो गईं। बाबासाहेब ने इसे "महिलाओं की गुलामी का एक प्रमुख कारण" माना।

  • सामाजिक नियंत्रण: मनुस्मृति और अन्य ग्रंथों ने महिलाओं पर कठोर नैतिक और सामाजिक नियम थोपे, जैसे सती, पर्दा और पुनर्विवाह पर रोक, जो उनकी स्वतंत्रता को सीमित करते थे।

  • सांस्कृतिक पतन: बाबासाहब ने हिंदू धर्मग्रंथों में महिलाओं को हीन मानने वाली मान्यताओं की आलोचना की। उन्होंने कहा, "ऐसे ग्रंथों ने समाज को यह सिखाया कि महिलाएँ पुरुषों से नीचे हैं।"

बाबासाहब के सुधारवादी विचार

हालांकि The Rise and Fall of Hindu Women मुख्य रूप से एक विश्लेषणात्मक निबंध है, बाबासाहब ने इसमें सुधार की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने लिखा, "महिलाओं की प्रगति के बिना हिंदू समाज की प्रगति असंभव है।"


(The progress of Hindu society is impossible without the progress of women.)

  • शिक्षा: बाबासाहब ने महिलाओं की शिक्षा को उनकी मुक्ति का आधार माना। उन्होंने कहा, "शिक्षा ही वह साधन है जो महिलाओं को सामाजिक बंधनों से मुक्त कर सकता है।"

  • कानूनी अधिकार: बाद में, हिंदू कोड बिल के माध्यम से, उन्होंने महिलाओं को संपत्ति, विवाह और तलाक में समान अधिकार देने की वकालत की, जो उनके इस निबंध के विचारों का विस्तार था।

  • सामाजिक जागरूकता: बाबासाहब ने समाज से आग्रह किया कि वह मनुस्मृति जैसे ग्रंथों को त्यागे और समानता पर आधारित व्यवस्था को अपनाए।